Jindgi se azadi
रातें सर्द है और दिल जमा हुआ
बदन ठंडा गोश्त है
तेरी यादों की गरमाहट ने जिंदा रखा है
वरना मैं तो कब से बेहोश हूं|
दिलजलो से पुछिये कितनी अकेली होती है रातें
अकेलेपन का अहसास करा जाती है ये रातें
दिन में तो कई दोस्त मिल जाते हैं
पर तन्हा रात में कोई हमसफर नहीं मिलता|
तेरी उम्मीद पे जिंदा हूं
वरना जिंदगी की लौ कब के कम हो चुकी है
तू आ जा
आखिरी बार देख ले
कि मेरी रूह को मेरे से आजादी मिल जाए|
तू मिली नहीं
इसका गम नहीं मुझे
तू मेरी मोहब्बत बनी
मेरी जिंदगी इतनी ही काबिल-ए-एहतिराम है|
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