Kuch kahna chahta hu
लुट गई महफ़िल
कारवां का क्या हिसाब रखूं|
तू जब मिला ही नहीं
आसुओं के समंदर का क्या करूं||
ज्ञान का दीप जीवन में
अन्य कोई अर्थ नहीं दिवाली का
अगर जीवन में ज्ञान नहीं
मृत्यु से भी भयावह है यह जीवन||
चारो तरफ़ अँधेरा है
तूने लौ ही बुझा दी
कर के रोशनी का वादा
तूने शहर ही जला दी...
रोज युही आते हो
और चले जाते हो|
आज कुछ नया है
अब नहीं जा पाओगे||
सहर गुस्से में है
जब भी मैं गुजरता हूँ||
क्यू नहीं एक ठिकाना चूंते
मैने कहा कि जमाना ही बेवफा है||
जब भी आसरा लिया एक घराने में
दूसरे दरवाजे को बनते देखा||
मैं क्या कहूँ तुमसे
तन्हाई पे ही बस अब भरोसा है||
मैं आसान हूं सुलभ हूंतुम्हारे पास हूतुमसे जुड़ा हूजीवन में एक ही लक्ष्य बनाया थाउसके लिए ही संकल्पित हूंमेरे पास आओसब कुछ साधरण हैआसनी से समझने वाला हैबोलने की आवश्यकता नहींआखें सक्षम हैचेहरा बोल रहा हैतुम बस आओयहाँ सब कुछ संभव है...
मरने से कहा मरता है इंसान
मरता है खुदगर्जी से
उसपे मरके देख
किसी उर्स से कम नहीं ये मौत....
मरना है मुझे
ये देखने को मैं जिंदा क्यों था?
मरने के बाद अगर मौका मिले
तो बताऊंगा तुम्हें कि तुम जिंदा क्यों हो...??
मैं बस मरने की बात क्यों करता हूं
क्योंकि सच मुझे पता है
मैं जिंदगी को जानता हूं|
इसलिए मौत से प्यार करता हूं|
जिस दिन मौत को जान जाऊंगा
शायद जिंदगी से भी प्यार कर लू|
मुझसे मत पूछ मैं कौन हूँ
यही सोचते सोचते उमर निकल गयी
अब भी खुद को ढूंढ रहा है
मिल जाउ कहीं खुद से तो तुझे बताउ
की आख़िर मैं हू कोन...
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