इस जारे के धूप के साथ

 क्यू ऐसी करती हो

क्यों मुझे इतना तड़पाती हो

जारे की धूप जैसी हो

क्यू मिलने से कतराती हो

मैं छठ पर बैठा इंतजार में हूं

घंटो बीत गए

पर तुम अब तक नहीं आये हो

सुबह से शाम हो गई

धूप कब आई

और चली भी गयी

पता ही नहीं चला

तुम्हारी उम्मीद में बैठा रहा

ठंड लगती ही रही

धूप भी बेवफा निकली

जैसे आज तुम

रोज सुबह जाता हूं

हाथ में  liye एक किताब

पढ़ तो कुछ नहीं पाता

सोचता हूं कुछ लिख ही लूं

तुम्हारी सुन्दरता के बारे में

तो कभी तुम्हारे प्यार के लिए

तो कभी अपने इंतज़ार के लिए

तो कभी तुम्हारी बेवफाई के लिए

कलम तो चलता है

बस कुछ लिख नहीं पाता हूँ

ध्यान तो कहीं और है

कविता तो बहाना है

हर रोज़ की यही कहानी है

सुबह से शाम बितानी है

कितनी ठंड बीत गई

कितनी ठंड बीत जाएगी

तुम बस यहीं आती रहो

मेरी उम्मीद का पुल बांधे रखो

ऐसा क्या है तुझमें

कुछ सोच ही नहीं पाता हूं तुम्हारे अलावा

रोज देखता हूं

बार-बार देखता हूँ

एकटक देखता हूं

देखते ही जाता हूँ

कुछ पल को साल बना देता हूँ

तुम्हे जैसे पी लेता हूँ

ऐसा नशा कहीं नहीं

मैं शराबी नहीं हूं

पर तुमसे सुंदर नशा कुछ होगा भी नहीं

मैंने रातें ज|या की हैं

मैंने पूरे दिन, पूरे महीने और पूरे साल इंतजार किया है

हर साल इंतज़ार किया है

बस इस ठंड के लिए

जब दिन छोटे और रात बड़ी होने लगती है

थोरी थोरी ठंड लगने लगती है

मैं छठ (roof)पर जाने लगता हूं

हर रोज

हर सुबह

जब वो पहली बार आती है

एक साल के बाद

मुझे याद ही नहीं आता बीता पूरा साल

कुछ पल का दीदार

एक जिंदगी के लिए काफी है

मुझे क्यू नहीं मिला

जो मेरे लिए था

खुदा की ये कारिस्तानी

आज तक मुझे समझ नहीं आया

कितना चाहु उससे

क्या कर दूं उसके लिए

सब कुछ जायज है

मेरे इश्क के रास्ते में..

भूल ही नहीं पाता हूं

ऐसा शबाब है वो

क्या ख़ुदा

और क्या दुनिया

मेरे मालिक

मुझे माफ़ कर

उससे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं

क्यों किया मेरे साथ ऐसा

मुझे अलग क्यों भेजा

भेजा तो किस्मत में उसे देता

बिन उसके

क्या मतलब है जिंदगी का

(Kitna samay beet gaya

Pata hi nahi chala

Pyaar ka nasha

Badhta hi gaya) 

कितना समय बीत गया

पता ही नहीं चला

प्यार का नशा

बढ़ता ही गया

बच्चे बड़े हो गए

उसके गोद से उतर गए

अब खेलने लगे है

मुझे देखते हैं

मैं भी देखता हूं

उन्हें कैसे समझौ

जो मेरा हक था

तेरी माँ ने किसी और के दे दिया

और मुझे यू ही अकेला छोड़ दिया

क्या बोलूं तुझसे

ऐ मेरे खुदा

मेरे दर्द का कोई हिसाब नहीं

अपनी बदकिस्मती पर रोना आया

क्यु खुदा

आखिर क्यू

उसका नहीं बनाया मुझे

कुछ नहीं चाहिए था मुझे

सब ले लेते

बस उसके मंदिर का पुजारी बना देते

एक माहीं का ठंड

बारह महीने का हो जाता

वो धूप में यहीं आती

कपडे सुखाने

और में भिंग जाता उसके यौवन में

कितनी बार कोशिश की

दर्द भुलाने की

उसकी जगह किसी और को दिलानें की

हार गया मैं

अपने हर एक कोशिश में

और बेचैन हो गया उसकी याद में

जिंदगी बस काट रहा हूं

जी नहीं पा रहा हूँ

जीना था उसके साथ

और जी रहा हूँ किसी और के साथ

कैसें समझौं

और किस्से समझूँ

अपने मन का प्यार

कोई रास्ता ही नहीं

उसे पाने का

ऐसे ही ताड़पूंगा जिंदगी भर

इस जारे के धूप के साथ||

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