दरश दे दो मेरे कन्हैया
जी चाहता है समेट लु इन खूबसूरती को अपनी आँखों में
इन चिड़ियों की चहचहाहट को
इन हवाओं की सनसनाहट को
जी चाहता है समेट लु इन जलते हुए अंगारों को अपनी आगोश में.
मिटा दू सर्दी अपने बदन से
और बिछा दू अपनी मोहब्बत को इन फिजाओं में
पर ये सब कुछ तुम्हारे लिए ही कान्हा
मेरा कोई अर्थ ही नहीं तुम्हारे बिना
जी चाहता है दीदार हो जाए तुम्हारा
लेकिन करूं भी क्या
तुम्हारा दिल नहीं पिघलता मेरी तड़प देख कर
पता नहीं कहाँ छुपे हो
मैं राधा की तरह सुंदर नहीं हूं
शायद इसलिए
मेरा तन मन धन सब राधे तुम्हारे लिए
ले लो कोई भी परीक्षा
पर दरश दे दो मेरे कन्हैया
हृदय में राग
मन में आस
हर जगह है तुम्हारा वास
रुक रुक के आती है स्वास
अब आ भी जाओ मेरे पास
इतनी देरी क्यों
मेरे राधे
मेरे राधे
अब बहुत हुई मेरी प्रेमयाचना
इतना ना तरसाओ मुझे
आ जाओ मेरे मधुसूदन
विरह का दर्द कैसे समझाऊं तुम्हें
मेरी बेचैनी तुम क्या जानो राधे
तुम्हें लगा कर गले
खो जाऊं कहि मैं इन वादियों में ||
रूपेश रंजन
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