तुम्हारे मुस्तकबिल ही ये जिंदगी है

 कितना ऊँचा उडु

सब नीचे ही छूटे जा रहे हैं

किसके लिए ऊपर उडु

अपने तो निचे ही रह गए

सब कुछ पा भी लिया

तो सबसे ज्यादा मैं ही खोऊंगा||

रूपेश रंजन



इंसान की फितरत ही कुछ ऐसी है

बद्दिमाग है

सोचता नहीं है कल क्या होगा

गांव बरबाद कर के शहर में सुकून ढूंढता है

पेड़ काट के छांव ढूंढता है

मोहल्लों के बीच तालाब ढूंढता है

धूए के कोहरो के बीच आसमान ढूंढता है||

रूपेश रंजन


कहती है मुझे की भूल जाऊं उसे

बिस्तार थोरे है कि बदल आउं उसे

याद है याद

रह-रह के आएगी

रूह को छुआ है

जिस्म थोरे है कि कब्र में दफन हो जाएगी||

रूपेश रंजन


अश्क न गिराना मेरे जनाजे पे

तुझे रोता हुआ देख मर जाऊंगा एक बार फिर से

मरना कबूल है मुझे

पर तेरा रोना नहीं||

रूपेश रंजन



इंसान मर जाए

पर किसी पे कभी ऐतबार न करें

मरना तो है ही

कभी इश्क के खातिर कोई कब्र न छुए||

रूपेश रंजन


एक आहट भी मिल जाये

तो नज़रें हिल जाये

ख़ामोश नज़रें

कोई कब तक बर्दाश्त करें

नज़रो को तकल्लुफ़ कौन दे

सांसो को ही ना रोक दे

धड़कनो का क्या है फ़साना

तेरी आहटों का है दीवाना

इन्हे क्या पता

पत्थरों से आहट नहीं होती||

रूपेश रंजन


तुम्हारे मुस्तकबिल ही ये जिंदगी है

तुम नहीं तो कुछ भी नहीं

मिलो तो बताओ तुम्हें

मेरा दिल खामोश है

तेरी धड़कनो को सुनने के लिए

मेरी आखें बंद है

बस तुम्हें देखने के लिए

मेरी सासें बची हैं

बस तुम्हारे इंतज़ार में

थोरे देर बाद आना

मेरी लाश मिलेगी तुझे कब्र में||

रूपेश रंजन






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