कैसे भूलु तुम्हें

 आज जो तुम चली गई

जी नहीं पाऊंगा

ये पल जो ठहर गया

फिर में उठ नहीं पाऊंगा

बात रात की नहीं

मेरी सांसें तो तुम्हारे पास हैं||

रूपेश रंजन


प्रेम ही प्रेम है

हृदय पूर्ण है

मन में कोई लालसा नहीं

विरक्ति का भाव है

मैं ही प्रकीर्ति हूं

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मुझ में है

मैं खुद में ही नहीं हूं

आत्मा आज ब्रम्हात्मा है

आज कोई ईश्वर नहीं

वो मुझ में विद्यामान है

प्रेम ही अस्तित्व का कारण है

प्रेम से ही जीवन है

प्रेम ही दर्शन है

प्रेम ही कारक है||

रूपेश रंजन





कैसे भूलु तुम्हें

याद बनके दिल में उतर गई हो

आँखों में जैसे समा गई हो

देखूं किसी को भी

दिखती बस तुम ही तुम हो

हर जगह

हर बार

ये दुनिया

ये महफ़िल

बस तुमसे ही है मेरे लिए

मैं कब के फ़ना हो जाता हूँ

जो तेरी याद ना उभर आती बार बार

कैसे भूलु तुम्हें

यादें नहीं हैं बस

मेरी आदत बन गयी है

सुबह भी तुमसे

और शाम भी तुम्हारी याद से

हर पल बस तेरी याद

हवाओं के सरगम ​​में

नदियों के संगीत में

पक्षियों के कलरव में

तितलियों के रंग में

याद आती है मुझे

चलती है मेरे संग संग

कैसे भूलु तुम्हें

यादी आती हो मुझे

हर तड़पती रात में

हर बुझती चिराग में

हर टुटती सांस में

हर बिखरते ख्वाब में

भूलना भी चाहु

तो भूलुं कैसे

बिना रूह के जिस्म जैसा

तेरी याद के बिना मैं||

रूपेश रंजन







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