माटी का शरीर है
माटी का शरीर है
माटी में मिल जाएगा
काहे का घमंड
यहां कहां कुछ रह पाएगा
कुछ लेके ना आये थे
ना कुछ लेके जायेंगे|
तू सबसे बड़ा नहीं है
याद रख
तेरे से भी ऊपर कोई है
तू किसी को छोटा मत समझ
ये तेरी दुनिया नहीं है
तुम और मैं बस खिलाड़ी हैं
खेल तो किसी और का है|
तू बस अपना कर्म कर
इधर उधर के चक्कर में मत फस
जो तेरा नहीं है
उसके पीछे कैसा रोना है
जो पाया है
यहीं पाया है
साथ में कुछ नहीं जाना है
एक ना एक दिन
सबको माटी में मिल जाना है|
खुद को इतना चालाक मत समझ
तू क्या है
खुद को समझ
मैं ये हू
मैं वो हू
कोई नहीं सुनेगा
सबका एक ही भविष्य होगा
माटी का शरीर है
माटी में मिल जाएगा||
रूपेश रंजन
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