जीवन में बंध के ही जीवन से मुक्त होना है|
बंधन में बांध के
कहते हो बंधन से मुक्त होने को
रिश्तों में बांध के
कहते हो रिश्तों से मुक्त होने को
मोह ही कारण है
मोह विक्षेप कैसा
किसे छोर दू
किसे साथ रखु
जिसे भी साथ रखु
बंध तो जाउंगा ही
छोड़ दूंगा
तो जी नहीं पाऊंगा
मैं मानव हूं
जुड़ना ही मेरी प्रकृति है
निर्भता ही नियम है
कुछ भी रहित नहीं है जीवन में
जिस जीवन की कल्पना कर रहे हो
जीवन नहीं है वो
एकाकीपन है
एकाकीपन में मुक्ति मिल सकती है
जीवन क्रम नहीं चलेगा
चूल्हा खुद नहीं जलता है
लकरी जलती है तब खाना पकता है
जीवन खुद नहीं चलता है
मोह होता है तब ही परिवार आगे बढ़ता है
विग्रह समाधान नहीं है
आदर्श जैसी भी कोई स्थिति नहीं है
जीवन में बंध के ही जीवन से मुक्त होना है||
रूपेश रंजन
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