देखते हैं सूरज की हिमाकत को
उन सुर्ख लबों की कसम
जिस से मेरे ख्वाब गुलाबी है
जो मुझे आज भी जीने को मजबूर करते है
इतने दूर रहके भी
तेरे पास रखते हैं
प्यासा हू
मेरी पहुंच तुम हो
इसलिए मैं इस जहां में हूं
वरना क्या ही रखा है
इस जहां में
तुम समझो तो बेहतर है
तुम्हें समझाने को ही हम जिंदा हैं
तुम इश्क हो मेरा
फ़कत तुम्हें पाने को ही मेरी सासें है
मिल जाओ तो हसरतें मुकम्मल करु
नहीं तो तुम्हारी याद में यूही आसुं जाया करूं||
रूपेश रंजन
इस कदर चाहता हूँ
कि एक पल भी तेरे आखों से दूर न रहू
ऐसे अपना बना लू
कि हर वक़्त तुम्हारे साथ ही रहूँ
यूही बातें करते रहें
सुबह और शाम
और शाम से रात
की जिंदगी गुलजार लगे
तेरे सोहबत में
तुम्हें ऐसे प्यार करु
कि रात भी शरमा जाए और चाँद कहीं खो जाए
चांदनी तुम्हारी हो
कि दुनिया चाँद को भी भूल जाये||
रूपेश रंजन
तू भी बोल दे
थोड़ा सा लब खोल दे
जो दिल में है
किसका है तुझे इंतज़ार
मैं भी करता हूँ तुमसे प्यार
इज़हार ए मोहब्बत में
न वक़्त जाया कर
जिंदगी छोटी है
और अरमान दूर आसमान तक
कर लेते हैं पूरा हर ख़्वाब
नहीं सुन रहा है दिल
अब मेरी कोई बात
कब तक रोक पायेगी मुझे
तू भी समझ मेरे जज्बात
आ जाओ मेरी बाहों में
सिमट जाते हैं जैसे नींद और ख्वाब
कर लेते हैं कुछ बात
चांद की चांदनी में
छू लेते हैं संगमरमर को
रात का पता नहीं
पर दिल तो मेरा कभी भरता नहीं
देखते हैं सूरज की हिमाकत को
चाँद को कैसे रोक पायेगा आज||
रूपेश रंजन
उसके भी ख्वाब थे
और मेरे भी
मेरे ख्वाब में वो थी
और उसके ख्वाब में कुछ और
मैं कैसे अपने ख्वाब पूरे करता
जो उसके ख्वाब अधूरे रह जाते
पूरे होने दिया उसके ख्वाब
वो आज सितारा है
और मैं ज़मीन से उसे देख रहा हूँ||
रूपेश रंजन
बनते हुए तुम्हारे ख़्वाब
मैं कहां हूं तुम्हारे ख्वाब में
जिसने तुम्हें ख्वाब सजाना सिखाया
अब कहां है वो तुम्हारे ख्वाब में
सवाल तो है
पर तुम्हारे जवाब के दायरों से बाहर
कौन तकल्लुफ़ उठाये
क्या फर्क पड़ता है
कोई रहे या चले जाये||
रूपेश रंजन
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