प्रेम के छंद

 प्रेम के छंद


प्रकृति के कवि, प्रेम में गहरे,

शब्दों से रचें प्रेम के पहरे।

फुसफुसाहटों में गूँजते सुर,

नदी, पहाड़, और हरे भरे कुर।


वो लिखती है आकाश के रंग,

सपनों में वो भी देखे संग।

उसकी हर पंक्ति, जैसे नृत्य हो,

हर अक्षर पर उसका स्पर्श हो।


वो रचता पेड़, हवा की चाल,

घाटियों का जादू, झील का हाल।

हर पत्ता, हर लहर, हर किनारा,

उसके नाम का गीत हमारा।


चलते संग फूलों की राहों में,

दिल के सुर मिलते हैं बाहों में।

रात और दिन, हर छंद में,

उनकी रूह बसी प्रेम के बंद में।


हवा और रौशनी के इस संसार में,

शब्दों में उनका प्रेम निराकार में।

दो कवि, दो दिल, छंदों के संग,

अमर प्रेम, अनंत के रंग।



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