"ऋतुओं की महक"

 "ऋतुओं की महक"


सुबह की शांति में एक हलकी सास,

ऋतुएं जाग उठती हैं, महकती हर आस।

हर बयार , हर झोंका, एक कहानी कहे,

प्रकृति का दिल, जो गुनगुनाए और गाए।


वसंत आता है, अपनी महक संग,

नम हवा में खुशबू जैसे मीठा रंग।

बगिया की खुशबू, माली का रंग,

नवजीवन का आभास और ओस की तंग।


धरती जागे, माटी में खुशबू हो,

बुंदों की महक में जीवन की जो हो।

एक बगिया, एक हरा मैदान,

महक में बसी है सृष्टि की पहचान।


फिर गर्मी आती है गर्म हवाओं संग,

संतरे की महक, घास का छांटा रंग।

समुद्र की नमकीन हवा का अहसास,

धूप में बसी है हर नई सास।


आग जलती है, रातें संगीं सी,

धुआं सा उभरता है, कहीं दूर बसी।

फल पकते हैं, स्वाद छुपा मन में,

गर्मियों की महक बसी है हर कदम में।


पतझड़ आता है रंगों की अंगीठी,

ठंडी हवाओं संग, धीरे से बिखरी।

सिंपल से मसाले, सूखी पत्तियों की खुशबू,

कद्दू की महक, और फ़सल की छांव।


पत्तियां गिरती हैं, ठंडी बर्फ की रुत,

ठंड में महक, सर्दी का सच्चा रूप।

पाइन के पेड़, उनकी सीधी खुशबू,

ठंडी रातों में ताजगी का जादू।


सर्दियाँ गाती हैं अपनी हठीली धुन,

बर्फ की महक, सर्द हवाओं का जुन।

जवां राख की महक, तारों वाली रात,

सर्दी में गरम जो मिल जाए साथ।


हर ऋतु की महक एक अनमोल कड़ी,

हर बयार में लहराए उसकी ठंडी।

वे लहराती हैं, जैसे गीत और तान,

वो महक कभी नहीं जाती है हाँ।


वो खुशबू जो दिल में बसे,

जो मौसमों को बदलते छुए।

हर सांस में बसी उनकी पहचान,

मौसमों के गीत की अनोखी जान।


हर सांस में बसी हो यादें,

जो ऋतुएं दे जाएं बातें।

ध्यान से सुनो, ये नज़ारे,

ऋतुओं की महक में बसी हैं सवारी।


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