खालीपन का एहसास

खालीपन का एहसास


इतना कुछ लिख चुका हूं अब तक,

शब्दों का समंदर कर चुका हूं निचोड़ तक।

हर भाव, हर जज्बात जो अंदर था,

कलम की धार से बाहर बहा।


फिर भी एक खालीपन सा है,

जैसे मन में कोई सूनापन सा है।

जो भीतर उथल-पुथल मचाता था,

वह सब अब कागज पर उतर जाता था।


हर कविता, हर कहानी, हर लेख,

जैसे दिल का हल्का किया हो द्वेष।

पर अब लगता है, कुछ बाकी नहीं,

शब्दों का बहाव रुक गया यहीं।


नए विचार अब नहीं आ रहे,

जैसे ख्यालों के पर थम गए।

मन का आकाश कुछ शांत सा है,

भावनाओं का समुद्र शांत सा है।


क्या यह ठहराव एक ठहराव है,

या सृजन का यह एक नया भाव है?

शायद मन को कुछ समय चाहिए,

नए ख्यालों को जगह बनानी होगी।


हर लेखक के जीवन में आता है पल,

जब शब्द भी करते हैं मन को छल।

हर कलम की धार कभी कुंद होती है,

जब अंदर की गहराई मंद होती है।


शब्दों का संसार कभी ठहरता है,

नए विचारों का बीज वहीं उगता है।

इस खालीपन को गले लगाओ,

इस सन्नाटे में भी सुख पाओ।


शायद कुछ दिनों का विराम चाहिए,

मन को फिर से आराम चाहिए।

नई उर्जा, नई सोच का प्रकाश,

फिर से भर देगा मन का आकाश।


इस ठहराव को मत गलत समझो,

यह भी सृजन की एक प्रक्रिया मानो।

जैसे बीज को समय चाहिए उगने का,

वैसे ही मन को वक्त चाहिए जगने का।


एक दिन फिर से विचार आएंगे,

शब्द फिर से नृत्य करेंगे।

जो खाली था, वह फिर से भरेगा,

और सृजन का जादू फिर से चलेगा।


इस ठहराव में भी है एक कविता,

यह भी तो एक नई दृष्टि की प्रक्रिया।

जो अभी लिख रहे हो, वही तो सार है,

तुम्हारे सृजन का यह नया विचार है।


तो बैठो, शांत हो जाओ कुछ पल,

मन को दो नई ऊर्जा का जल।

फिर देखना, यह खालीपन छूटेगा,

और नया सृजन तुम्हारे पास लौटेगा।


यह ठहराव भी तो एक गीत है,

शब्दों का अंत नहीं, यह तो नई प्रीत है।

क्योंकि सृजन कभी रुकता नहीं,

बस थमता है, ताकि फिर बहे सही।


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