एक क्रांति का बिगुल बजाएंगे
स्वतंत्रता की चाह में उठे, एक क्रांति का बिगुल बजाएंगे,
हर जंजीर को तोड़ेंगे हम, नया सवेरा लाएंगे।
जहां बेड़ियों में बंद हैं सपने, जहां मन के पर हैं कटे,
हम उस बंजर धरती पर, फिर से बीज उम्मीद के बिछाएंगे।
चुप्पियों के घूंघट हटाकर, आवाज़ों को ऊंचा करेंगे,
जहां बंद हैं होंठ खामोश, वहां हौसलों के गीत गाएंगे।
ना तख्त का खौफ, ना ताज का लालच,
हर जन की आजादी का दीप जलाएंगे।
ये क्रांति नहीं एक आवाज है, ये मुक्ति का एक पैगाम है,
हर दिल में बसी स्वतंत्रता की, ये गूंजता हुआ अरमान है।
हम अपने हक़ की लड़ाई लड़ेंगे, हम अपनी राह खुद बनाएंगे,
एक नई दुनिया में, अपनी पहचान फिर से बनाएंगे।
आओ साथ चलें इस सफर में, हर बंधन को मिटाने,
स्वतंत्रता की धारा में बहेंगे, अब नया इतिहास लिखाने।
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