गूंजते सन्नाटे

 गूंजते सन्नाटे


सन्नाटा है, पर गूंज रही,

मन के भीतर बात वही।

दूर कहीं जो हलचल थी,

अब सन्नाटे में रच रही।


हवा की सरसर, धीमे कदम,

चुप्पी की बातें गहरातीं।

खामोशी में जो छिपा हुआ,

वह जीवन के राज बताती।


एक बूँद जो पत्ते पर गिरी,

उसकी गूँज ने झील जगाई।

सन्नाटे ने कहा धीमे से,

जीवन के संग साज़ बजाई।


धड़कन की धुन, सांसों का गीत,

सन्नाटे का अपना संगीत।

खुद को सुनने का अवसर है,

गूंजते सन्नाटे का मीत।


दूर कहीं पहाड़ों में गूँज,

जंगल की गहरी आवाज़।

चुप्पी का हर रंग नया है,

हर कोना रखता अंदाज़।


मन के भीतर मंथन गहरा,

सन्नाटे में वह फूट पड़ता।

शब्द जो अधूरे रह गए,

सन्नाटा उन पर हंस पड़ता।


पथिक का पथ, अनजान सफर,

सन्नाटा साथी बन जाता।

चाँदनी रात, तारों का गगन,

यह चुप्पी से दिल बहलाता।


आँखों में सपनों का मेला,

पर शब्द नहीं, बस गूँज है।

सन्नाटे की अपनी भाषा,

हर धड़कन में ताजमहल सा।


सन्नाटा न व्यर्थ कभी होता,

हर गूंज उसमें बात कहे।

हर खामोशी के पीछे छिपा,

एक नया सूरज जगमगाए।


गूंजते सन्नाटे का गीत,

हृदय की गहराई में बैठा।

यह जो मौन का महासागर,

जीवन का हर रहस्य समेटा।


Comments