"ऋतुओं के बदलाव में छुपा दर्द"

 "ऋतुओं के बदलाव में छुपा दर्द"


हर ऋतु में बसी होती है एक धडकन,

जिसमें छुपा होता है दिल का कोई अक्स।

वसंत में खिलते हैं रंगीन फूल,

हर पल में बसती है एक नई हलचल।


वसंत की महक, मिट्टी का स्वाद,

जो छूकर जाता है दिल के हर एक राज़।

हर सुबह की ओस, हर शाम की हवा,

प्यार सा लगता है, जैसे कुछ नया।


वसंत में बसी होती है हर धडकन,

जो जैसे सजा देती है हर आँगन।

फूलों की नमी, हवा का हल्का संगीत,

इनकी सूरत में बसी होती है एक मीठी सी भूत।


फिर भी जब वसंत की धड़कन धीमी हो,

दिल में एक खालीपन सा आ जाता है।

जैसे किसी प्यारी चीज़ को खोने का दुःख,

वो रंग, वो गंध अब दूर होने लगता है।


गर्मी आती है, जो जलन का संकेत है,

वो ही हवा जो पहले थी ठंडी सी,

अब वह गुस्से में है, तपिश से भरी,

सूरज की तेज़ी, दिल में गहरी छाँव सी।


गर्मियों में पसीना, लू का थप्पड़,

आम के पेड़ और उनका हर बोरा।

गर्मियों में बसी थी एक यादों का खज़ाना,

जो अब फीका पड़ता जाता है, जैसे हर पल सुस्ताना।


लेकिन, फिर भी गर्मी की गर्मी में,

एक अनजानी सी ताजगी छुपी होती है।

एक समय था जब गर्मी में बर्फीले पानी का स्वाद,

जो अब घुल कर रह जाता है, सुनीन रह जाता है।


फिर जब मौसम बदलता है और पतझड़ आता है,

पत्तियाँ गिरती हैं, सूखने लगता है रंग।

पतझड़ में बसी होती है एक गहरी शांति,

लेकिन उस शांति में बसी होती है एक कड़वाहट।


सूखी पत्तियाँ, झड़ी हुई शाखें,

कभी हंसते हुए पेड़ अब सुने पड़े।

लेकिन फिर भी पतझड़ की हवा में,

एक पुरानी याद बसी रहती है, कोई ताजगी।


जब सर्दी आती है, एक अजनबी सा कड़ापन,

सर्दी के पहले ठंडे दिनों में एक अजनबी सा डर,

फिर भी सर्दी में बसी होती है एक गर्माहट,

जो बर्फ के बावजूद, एक राहत देती है दिल को।


चाय की खुशबू, आलाव की गर्मी,

एक गहरी नींद, एक सुकून की ताजगी।

सर्दी में बसी होती है एक मुलायम सी चाहत,

जो गर्म बिस्तर में समाती जाती है, जैसे प्रेम की रात।


लेकिन, हर ऋतु का अंत एक दर्द के साथ आता है,

जैसे हर शुरुआत में एक अंत छुपा होता है।

जब एक मौसम का प्यार छूटता है,

तब दिल में एक खालीपन सा हो जाता है।


वसंत की महक अब याद बन जाती है,

गर्मी की यादें दिल में बसी रहती हैं।

पतझड़ की गहरी सोचें कहीं खो जाती हैं,

सर्दी की शांति में एक असमाप्त सन्नाटा बसा होता है।


कभी लगता है कि क्यों हर मौसम की खुशी,

हर घड़ी, हर लम्हा, हर एक घड़ी छूट जाती है।

क्या सच में एक मौसम की यादें,

वो अहसास, वो कनेक्शन खोना चाहिए था?


वसंत के फूल और उनकी रंगत,

गर्मी की धूप और उसकी तपिश,

पतझड़ का ठंडा हवा और उसकी शांति,

सर्दी की सर्द हवाएं और उसकी सुकून की धीमी धड़कन।


ये सब मुझे बार-बार खींचते हैं,

लेकिन जब वो चले जाते हैं,

तो दिल में एक गहरी रिक्तता सी बसी रहती है,

एक पुराना प्यार, जो अब सिर्फ यादों में बसा रहता है।


क्या है ये रिश्ता जो हर ऋतु से बनता है,

क्यों हमें इस बदलते मौसम का दर्द महसूस होता है?

क्या हम उन मौसमों से जुड़ते हैं,

जो धीरे-धीरे हमारे दिल का हिस्सा बन जाते हैं?


हर ऋतु में हम कुछ खोते हैं, कुछ पाते हैं,

हर बदलाव के साथ एक नई उम्मीद होती है।

लेकिन फिर भी, उन मौसमों का छोड़ना,

एक बहुत बड़ी पीड़ा बन जाती है, जो दिल में गहरी होती है।


जैसे हर ऋतु में बसा एक प्यार,

वैसे हर ऋतु के अंत में एक विरह का दर्द।

पर यही तो जीवन है, यही तो उसका रंग,

मौसम बदलते हैं, लेकिन यादें रहती हैं संग।


अब हर मौसम के साथ वह पुरानी क़ीमत समझता हूँ,

कि हर परिवर्तन में कुछ खोने का दर्द ही होता है।

लेकिन फिर भी, हर बदलाव के साथ एक नई यात्रा,

जिसमें एक नया मौसम और एक नई खुशी होती है।


तो चाहे वसंत हो, गर्मी हो या पतझड़,

या फिर सर्दी का ठंडा सन्नाटा,

हर ऋतु में एक ताजगी होती है,

जो हमें उस ऋतु से जोड़ती है, और फिर हम उसे याद करते हैं।


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