तुम मुझमें ही हो कहीं न कहीं
तुम मुझमें ही हो कहीं न कहीं
तुम मुझमें ही हो, कहीं न कहीं,
जैसे बहारों में छुपी हो ऋतु की लयबद्ध धुन।
जैसे खामोश रातों में छुपा हो चाँदनी का रंग,
तुम्हारी मौजूदगी है, पर नज़रों से ओझल संग।
तुम हो मेरी सांसों के साज़ में,
जैसे बहते जल में होता है गहरे राज़ में।
तुम्हारी खुशबू, हर फूल की महक में बसी,
मगर अदृश्य, जैसे ओस की बूँद हो घास पर जमी।
तुम हो उस धड़कन में, जो हर पल कहती है,
कि जीवन की कविता में तुम्हारी धुन बहती है।
जैसे सुरों में बसा हो गीत का अहसास,
तुम मेरी रग-रग में हो, जैसे प्रेम का इतिहास।
तुम हो उस चुप्पी में, जो सब कुछ कह जाती है,
और उन आँखों में, जो सपनों को सजाती है।
जैसे कोई गुमनाम सी कहानी हो अधूरी,
तुम्हारी उपस्थिति है मेरे जीवन की धुरी।
तुम हो उस हवा में, जो चेहरे को सहलाती है,
और हर सुबह की किरण में जो उजाला लाती है।
तुम्हारी यादें हैं, जैसे पुरानी किताबों का पन्ना,
जो हर बार पढ़ने पर भी लगता है नया सपना।
तुम मुझमें हो, जैसे शब्द में छिपा हो अर्थ,
जैसे धरती में छुपा हो जीवन का गर्भ।
तुम्हारा होना, हर पल मेरे साथ रहता है,
जैसे बारिश में मिट्टी की सौंधी खुशबू बहता है।
तुम्हारी हंसी, जो मेरे दिल को छू जाती है,
जैसे चाँदनी रात में सागर की लहरें गाती हैं।
तुम्हारे बिना, अधूरी है मेरी हर बात,
जैसे बिन सूरज अधूरी होती है दिन की औकात।
तुम हो उस सन्नाटे में, जो सबकुछ सुन लेता है,
और उन आँसुओं में, जो खामोशी से बहता है।
तुम्हारा होना है, जैसे जीवन का संगीत,
जो हर धुन में बसा है, हर क्षण में अतीत।
तुम मुझमें हो, जैसे आत्मा में प्राण,
जैसे गीत में छुपा हो सुरों का सामान।
तुम मेरी रचना हो, मेरी कविता का अर्थ,
जैसे सृष्टि का आधार, जैसे जीवन का अर्थ।
तुम हो मेरे शब्दों के पीछे की छवि,
जो हर कविता को देती है अपनी नयी लवी।
तुम मुझमें हो, कहीं न कहीं,
जैसे जीवन के हर मोड़ पर छुपा हो कोई किनारा।
तुम्हारी आँखों का जादू, मेरी रातों में समाया है,
जैसे अंधेरों में चुपचाप दिया जलाया है।
तुम्हारा साथ, मेरा संबल, मेरा आधार,
तुम मुझमें हो, जैसे मन में बसा हो संसार।
तुम मुझमें ही हो, कहीं न कहीं,
जैसे आत्मा का प्रतिबिंब हो जल में कहीं।
तुम मेरी रूह हो, मेरा दिल, मेरी पहचान,
तुमसे ही है मेरा होना, मेरा अस्तित्व महान।
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