छोटी सी दोस्ती

 छोटी सी दोस्ती


बस एक सफर था, एक छोटी सी राह,

दिनचर्या का हिस्सा, कुछ भी न खास।

पर भीड़ भरी उस चलती ट्रेन में,

मिल गया एक दोस्त अनजाने में।


एक मुस्कान, एक हल्का इशारा,

बिन कहे बहुत कुछ था तुम्हारा।

पटरी पर दौड़ते उन पलों के बीच,

जुड़ गया मन जैसे कोई अटूट खींच।


ख्वाबों की बातें, डर की कहानियां,

हंसी के लम्हे, मन की परेशानियां।

कभी जो अजनबी थे, अब ऐसा लगा,

जैसे बरसों का रिश्ता हो जुड़ा।


मीलों का सफर कब बीत गया,

स्टेशन का संकेत कब आ गया।

तुम्हारा स्टेशन आया, तुम खड़े हुए,

मेरे दिल में हलचल के बादल घिरे।


एक मुस्कान, एक हाथ का झटका,

विदाई का पल दिल को खटका।

भीड़ में तुम खो गए धीरे-धीरे,

और मेरी ट्रेन चली आगे धीरे।


चुभता है, सच में दर्द होता है,

जब कोई साथी इस तरह खोता है।

एक छोटी सी दोस्ती, पल दो पल की,

यादों में रह जाती है उम्र भर की।


ट्रेन तो चलती रही अपनी चाल,

पर मन ठहर गया उसी हाल।

क्या कभी फिर मिलोगे, कौन जाने,

किसी और सफर में, किसी और माने।


तुम्हारा दिया वो पल अनमोल,

मन को सिखा गया नई बातों के बोल।

इस भागती दुनिया में भी कभी,

खुले दिल से जुड़ सकते हैं सभी।


जिंदगी का शायद यही है दस्तूर,

स्टेशन आते हैं, बिछड़ते हैं नूर।

कुछ चेहरे ठहरते हैं, कुछ चले जाते,

पर दिल पर अपने निशां छोड़ जाते।


अब मैं बैठा हूं, ट्रेन के संग,

सोच रहा तुम्हें उन लम्हों के ढंग।

ट्रेन तो आगे बढ़ती रही,

पर मेरा मन वहीं ठहर गया कहीं।


एक साधारण सफर, पर खास बना,

मन के दरवाजे को पास बना।

जुदाई का दर्द, पर खुश हूं फिर भी,

कि ट्रेन में मिली वो छोटी सी दोस्ती।


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