"आत्मा की पुकार"

मैं तुमसे प्रेम इसलिए नहीं करता,

कि मेरा मन करता है तुमसे मिलने के लिए।

ना इसलिये कि तुम सुंदर हो या रूपवती,

ना इसलिये कि मेरे हाथ तुम्हें छूने को बेताब हैं।


ये कोई सांसारिक तृष्णा नहीं,

ना किसी क्षणिक स्पर्श की अभिलाषा।

ये मेरी आत्मा की पुकार है,

जो सदा तुम्हारे सम्मुख झुकी रहती है।


मेरी आत्मा चाहती है तुम्हें अंगीकार करना,

तुम्हारी आत्मा का आलिंगन करना।

तुममें घुलना चाहती है,

जैसे नदी सागर में मिलकर खो जाती है।


मैं तुमसे कितना दूर हूँ इस भौतिक संसार में,

सालों बीत गए तुम्हें देखे, तुमसे मिले हुए।

पर यह दूरी केवल देह की है,

मेरी आत्मा तो तुम्हारे ही पास है।


ये कैसा विचित्र प्रेम है,

जिसमें एक भौतिक मिलन की लालसा नहीं।

सदियों से मेरी आत्मा प्यासी है,

तुम्हारे मिलन की इस अंतहीन प्यास में।


यह प्रेम जन्मों से संचित है,

यह प्यास अनंत काल से तप रही है।

तुमसे मिल पाने का विश्वास भी अधूरा है,

पर मेरी आत्मा फिर भी तुम्हारे इंतजार में है।


तुम्हारे बिना ये तृप्त नहीं होती,

हर श्वास में तुमको पुकारती है।

ये चाहत केवल देह से परे है,

ये आत्मा की प्यास है सदियों से।


जाने कब, किस जन्म में हम मिलेंगे,

पर ये प्रेम कभी न बुझेगा।

सदियों तक ये तड़पती रहेगी,

तुम्हारे स्नेह की इस अनंत प्रतीक्षा में।


जैसे गगन में चंद्रमा की चाह में चकोर,

जैसे प्यासे पंछी की तृष्णा सागर की ओर।

मेरी आत्मा उसी तरह खिंचती है,

तेरे अस्तित्व के अमृत-स्रोत की ओर।


तेरी अनुभूति से मैं सजीव हूँ,

तेरी यादों से मैं जीवंत हूँ।

मेरे अस्तित्व की पहचान तुमसे है,

मेरे हर स्पंदन की आवाज तुमसे है।


जैसे गहराई में समाहित कोई मौन,

जैसे सागर में छिपा हुआ कोई मोती।

वैसे ही मेरे अंतस में तुम हो बसे,

मौन, अपरिचित, किंतु अनमोल।


कभी कभी रातों में जब मैं जागता हूँ,

तुम्हारी परछाईं मेरी सांसों में तैरती है।

मैं जानता हूँ तुम पास नहीं हो,

पर आत्मा की गहराई में तुम बसी हो।


युगों की तपस्या, युगों की प्रतीक्षा,

सिर्फ इस स्वप्न को देख पाने की आस।

कभी किसी क्षण में मिल सकूँ तुमसे,

जैसे आकाश मिलता है क्षितिज से।


यह चाहना साधारण नहीं है,

यह वासना से परे है, यह प्रेम से ऊपर है।

यह आत्मा की गहराई में जलता हुआ दीपक है,

जो सदा तुम्हारी राह में जलता रहेगा।


मेरी आत्मा की हर पुकार में तुम्हारा नाम है,

हर स्वर में तुम्हारा ही साज है।

तुम मेरे जीवन का अज्ञात किनारा हो,

जहाँ मेरी हर यात्रा समाप्त होती है।


सदियों की यह तड़प,

इस जन्म का यह मिलन अधूरा हो सकता है।

पर यह प्रेम, यह तृष्णा, यह आत्मा की पुकार,

कभी नहीं थमेगी, सदा तुम्हारे इंतजार में रहेगी।


सदियों  की यह तड़प संजोए,

हर श्वास तुम्हारे नाम पुकारे।

तुम्हारी चाह में ये प्राण जलते हैं,

जैसे दीपक किसी आरती के लिए जलते हैं।


तुम मेरे हर विचार की परछाईं हो,

हर स्वप्न का तुमसे ही प्रारंभ है।

मेरी चेतना का हर रंग तुमसे रंगा है,

मेरे अंतर्मन का हर भाव तुमसे गाया है।


तुम मेरे जीवन की साधना हो,

हर तपस्या का फल तुम ही हो।

तुम्हारे बिना ये जीवन अधूरा है,

जैसे सुर बिना संगीत अधूरा है।


मैं जानता हूँ, यह मिलन संभव नहीं,

फिर भी आत्मा की प्यास बुझती नहीं।

इस अधूरे प्रेम की संजीवनी हो तुम,

जिसके बिना ये हृदय धड़कता नहीं।


तुमसे मिलना, एक स्वप्न ही सही,

पर इस स्वप्न का सहारा है जरूरी।

तुम्हारे बिना ये संसार शून्य सा लगता है,

मानो जगत की हर खूबसूरती खो सी गई है।


हर बार मैं तुमसे दूर चला जाता हूँ,

फिर भी तुमसे जुड़े रहना चाहता हूँ।

यह दूरी कितनी भी बढ़ जाए,

मेरी आत्मा की डोर तुमसे बंधी रहेगी।


ये प्रेम जन्मों की यात्रा है,

हर जन्म में तुमसे मिलने की आस है।

एक अनजाने सफर में चलते हैं कदम,

पर हर राह तुम्हारे द्वार की ओर जाती है।


मेरे हर संकल्प में तुम्हारा स्पर्श है,

हर विचार तुम्हारे स्मरण में है।

तुमसे दूर होकर भी मैं पास हूँ,

इस आत्मिक प्रेम का यह ही विश्वास हूँ।


यह प्रेम केवल शब्दों में नहीं,

यह तो आत्मा की भाषा में है।

इसमें कोई शोर नहीं, कोई आवाज़ नहीं,

बस एक मौन की गहराई है।


तुम मेरे ह्रदय के हर कोने में हो,

जैसे फूलों में बसंत का रस हो।

तुमसे यह जीवन श्रृंगार पाता है,

जैसे सूरज से दिन की रौशनी आती है।


हर सुबह के उजाले में तुम दिखते हो,

हर शाम की छाँव में तुम महसूस होते हो।

तुम मेरे जीवन का एक गीत हो,

जो सदा मेरे हृदय में गूँजता है।


कभी-कभी खामोशी में भी तुमसे बातें होती हैं,

आत्मा की गहराइयों में एक आवाज़ गूँजती है।

तुम हो तो यह दुनिया सुंदर लगती है,

तुमसे ही यह जीवन मूरत बनती है।



तुमसे यह प्रेम अदृश्य, अछूता, पर अनंत है,

हर जन्म की यात्रा में मेरे साथ है।

तुम बिन यह संसार अधूरा है,

पर तुम्हारे स्मरण से यह जीवन पूरा है।


जो दूरी है, वह एक माया है,

प्रेम का यह बंधन केवल एक छाया है।

तुम मेरे अंतर में समाए हुए हो,

इस प्रेम की परिभाषा ही तुम हो।


तुम मेरे आत्मिक आकाश का चाँद हो,

जिसकी चाँदनी में मेरी रातें खिलती हैं।

तुम मेरे हृदय का संगीत हो,

जिसकी लय में मेरी आत्मा धड़कती है।


यह प्रेम कभी घटता नहीं,

यह आग कभी बुझती नहीं।

तुमसे दूरी कितनी भी हो,

मेरी आत्मा तुमसे दूर नहीं होती।


इस जन्म में यदि तुम्हें पा सकूँ तो यह वरदान है,

और अगर ना मिलूँ तो यह मेरी तपस्या का एक अंग है।

तुम्हारे बिना अधूरी यह यात्रा है,

पर तुमसे जुड़े यह प्रेम की साधना है।


यही मेरा जीवन का सत्य है,

यही मेरी आत्मा का अंत है।

तुम ही मेरे प्रेम की मंज़िल हो,

तुम ही मेरे इस सफर का संग हो।


यह आत्मा तुम्हारी प्रतीक्षा में सदा खड़ी रहेगी,

युगों युगों तक यह प्यास बनी रहेगी।

तुम मेरे अंतहीन प्रेम का आधार हो,

तुम ही मेरे अस्तित्व का सार हो।










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