मुझे मुक्ति चाहिए
मुझे मुक्ति चाहिए,
इन बंधनों से, इन सीमाओं से,
जो मुझे जकड़े हुए हैं,
जिनमें मेरा मन कैद है।
मैं उड़ना चाहता हूँ,
नीले आसमान की ओर,
खुले पंखों से, बिन रोक-टोक,
बिन किसी डर के, बिन किसी बोझ के।
मुझे मुक्ति चाहिए,
इस चिंता, इस भय, इस दुख से,
जो हर रोज़ मेरी साँसों को
थोड़ा और बोझिल बना देता है।
चाहिए मुझे स्वतंत्रता,
उन ख़्यालों से जो रुकावट बनते हैं,
जो मेरे सपनों की राह में
अवरोध बनकर खड़े हैं।
मुझे मुक्ति चाहिए,
उस अंधेरे से जो हर कोने में बसा है,
जो मुझे हर नई रोशनी से दूर रखता है,
और मेरे हौसले को धीमा कर देता है।
चाहिए मुझे वह शांति,
जो हर दर्द को सोख ले,
जो हर आंसू को मुस्कान में बदल दे,
जो मुझे खुद से जोड़ दे।
मुझे मुक्ति चाहिए,
अपने ही बनाए पिंजरे से,
जिसमें मैं ही हूँ कैदी और रक्षक,
मुझे खुद से आज़ाद होना है।
बस, मुझे मुक्ति चाहिए,
हर उस बंधन से, हर उस भ्रम से,
जो मुझे मेरी सच्ची पहचान से दूर रखे,
मुझे बस मुक्ति चाहिए...
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