छठ महापर्व पर कविता
सुबह की सुनहरी रौशनी में,
उठती है प्रार्थना शुद्ध और पावन सी।
सूर्य देव को करते हैं प्रणाम,
जैसे नदी का बहता अविरल धाम।
नदी किनारे खड़े हैं सब,
फल-फूल, दीपक हाथों में सब।
उपवास संग, रात बिताते,
सूरज के दर्शन को दिल लगाए।
माँ, बहनें, बेटियाँ भी कहें,
मंत्रों संग ये वचन कहें,
“शक्ति देना, शांति का वर,
धन-धान्य से भर दो घर-पर।”
सजे हुए दौरे, पूजा के थाल,
धन्यवाद करते सूरज की चाल।
हर दीप की झिलमिल रोशनी में,
आस्था है जो बसी धड़कन में।
छठ माई से करते हैं विनती,
सांझ और भोर में, नीले गगन में।
मार्ग दिखाओ, कृपा बरसाओ,
सूर्य की रौशनी से जीवन सवारो।
धन्यवाद, प्रेम और अनुग्रह का पर्व,
छठ मिलाए धरती और अम्बर।
परंपरा पुरानी, फिर भी नवीन,
सूरज की रौशनी में जीवन नवीन।
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