इस पल में बसा है जीवन का मूल



रिम के पास आकर ठहरता हूँ,

जहाँ सन्नाटा संग रस बहता है।

तरल की चमक, बुलाती सी पुकार,

स्वाद के वादे, दिल के पार।


पीने से पहले चखने का दस्तूर,

थोड़ा सब्र, थोड़ी दूरी भरपूर।

ठंडा एहसास, मुलायम छुअन,

हर घूँट से पहले, एक पल का जतन।


मैं चखता हूँ, फिर पीता हूँ धीरे,

हर बूंद का रस घोलूँ मैं सीने।

कप की गर्माहट, कांच की सर्दी,

हर स्वाद में छिपा जीवन का गर्दी।


लट्टे की झाग, काढ़े का तीखापन,

शहद की मिठास, अमृत का झुकाव।

कड़वाहट, मिठास, खट्टापन, मलाई,

हर स्वाद की तान मुझे लुभाए।


ये सफर, ये ठहराव, इसका मज़ा,

हर घूँट से पहले, यह पल सजा।

होठों की फुर्ती, जीभ का ठहराव,

हर स्वाद में छिपा, जीवन का भाव।


तो मुझे चखने दो, यह रस्म निभाने दो,

इस पल की मस्ती, मुझमें समाने दो।

चखना है चाहत, पीना है प्यार,

हर घूँट में बसा है जीवन अपार।


कप में छुपी, जीवन की गहराई,

सब्र और आनंद की सच्चाई।

पहले चखता हूँ, फिर लेता हूँ घूँट,

इस पल में बसा है जीवन का मूल।


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