मैं उसे चाहता हूँ, पर छू नहीं सकता

मैं उसे चाहता हूँ जैसे रात को तारे चाहें,

दूर चमकता, एक दर्द में बसा ये प्यारा सा हाहाकार।

एक गहरी चाह जो सागर की तरह फैली,

उसके ख्वाबों में बहता, पर कहीं छुपा नहीं।


वो रहती है वहाँ, जहाँ हाथ पहुँच नहीं सकते,

दिल या घर की पहुंच से परे कहीं बसती है।

अदृश्य धरा में उसकी आत्मा है बसी,

और मैं धुंध में बंधा हूँ जैसे किसी प्यास में फँसा।


मैं उसे चाहता हूँ जैसे वसंत की बयार,

एक मीठा सा वादा, पर क्षणिक सा प्यार।

एक धीमी सी प्रतिध्वनि जो पल में खो जाए,

जैसे हवाओं में एक बुझता अंगार उड़ जाए।


मेरा दिल बेइंतहा तड़पता है, पर जानता है,

वो मेरे सांस जितनी करीब, पर दूर जैसे परिंदे।

उसकी मौजूदगी एक खामोश धुन में बसती,

एक प्रेम गीत जो चाँदनी तले गूंजता है।


उसका चेहरा, जैसे भोर का उजाला मेरे नयन में,

आसमान को रोशन कर जाता, फिर जल्दी ही खो जाता।

एक झलक, एक परछाईं, फिर ओझल हो जाती,

जैसे सुबह में चमकते अंधेरों की परत उतर जाती।


वो वहाँ चलती है जहाँ मैं नहीं पहुँच सकता,

सुबह की पहली ओस में एक परी की तरह खो जाती।

मैं उसके हंसी का पीछा करता हूँ खाली गलियारों में,

एक मधुर ध्वनि जो धीरे से गिरती है, रह जाती है।


उसके हाथों को छूना, उसकी त्वचा को महसूस करना,

जैसे सितारों को पकड़ने का सपना।

पर रौशनी जैसे ही पकड़ी जाती है, हवा में घुल जाती,

और उंगलियों में खालीपन बस जाता।


वो इतनी करीब है कि मैं उसके बालों की खुशबू महसूस कर सकूं,

उसके आँखों की रोशनी देख सकूं।

एक गर्माहट जो मीठी और भूतिया सी है,

लेकिन हमारे मिलने पर मेरे हाथों से बच निकलती है।


वो ठिठकती ठंड जैसी उन पलों में रहती है,

सपनों में जो तड़पते हैं, खोए हुए घंटों में।

मैं पहुँचता हूँ, खिंचता हूँ, पर खाली हाथ रह जाता हूँ,

क्योंकि मैं उसे नहीं पकड़ सकता जो वहाँ है ही नहीं।


मैं उससे बात करता हूँ खामोश लफ्जों में,

कविताओं में जो हवा में परिंदों की तरह खो जाती हैं।

मेरी आवाज़, एक प्रतिध्वनि, समय में खो जाती है,

एक पहाड़ जो धुंध में कहीं गुम हो जाता है।


उसकी हँसी, एक हल्की सी ठंडक जो मेरी आत्मा में बसती है,

एक धुन जो काबू से परे होती है।

एक याद जो हड्डियों में बसी है,

एक गीत जो मैं अकेलेपन में सुनता हूँ।


मैं उसे बेइंतहा, बेतहाशा प्यार करता हूँ,

लेकिन किस्मत ने तय किया है कि वो कभी जान नहीं पाएगी।

क्योंकि वो मेरे सपनों में चलती है,

लेकिन दूर है जैसे तारे और धूप की किरणें।


उसे अब छूना इस जादू को तोड़ देगा,

वो नाजुक शांति जो मेरे दिल को जानने में है।

वो प्यार जो कभी छुआ नहीं गया, उसे बहने दो,

जैसे नदियाँ बहती हैं और वो रोशनी की तरह जिए या सपनों की तरह मर जाए।


तो यहाँ मैं हूँ, प्रेम की छायावादी रूप में,

इस तड़प से बंधा, इस अंतहीन तूफान में।

वो कभी मेरे फुसफुसाए प्रार्थना को नहीं जानेगी,

या मेरी आत्मा का वजन नहीं महसूस कर पाएगी।


मेरा प्यार, धुएँ की तरह उठेगा और धुंधला जाएगा,

एक धुंध, एक धुंधलका, सांझ के साए में।

वो हर आह के बीच मुझे सताएगी,

एक ऐसा प्रेम जो जीता है, पर मर नहीं सकता।


मैं उसे चाहता हूँ, लेकिन मेरे हाथ खाली रह जाते हैं,

कोई निशान नहीं पकड़ने को, कोई आत्मा नहीं देखने को।

एक ऐसा प्यार जो अदृश्य दुनिया में चलता है,

हमेशा बंधा हुआ उस चीज़ से जो हो सकता था।


उसे अब छूना आत्मा और दिल के उस नाजुक बंधन को तोड़ देगा,

क्योंकि इतना शुद्ध प्रेम मांस, सांस या धरती से बंध नहीं सकता।


वो सूरज में एक परछाईं है,

एक अनसुना गीत, एक अधूरी दौड़।

वो प्रेम जो खामोश जगह में जीता है,

एक भूतिया स्पर्श, एक क्षणिक आलिंगन।


एक पवित्र चाह, एक बंधी हुई करुणा,

एक ऐसा चुम्बन जो बिना निशान के मिट जाता है।

मैं उसे अब भी चाहता हूँ, हालांकि मैं छू नहीं सकता—

सबसे प्यारा दर्द, सबसे कोमल आलिंगन।


तो यहाँ मैं हूँ, हमेशा के लिए बंधा,

एक ऐसा प्रेम जो वास्तविक है, लेकिन बस नहीं सकता।

एक आत्मा का नृत्य, जो पास है पर दूर,

हमेशा महसूस होता है, लेकिन कभी यहाँ नहीं।


ऐसा प्रेम जो अमर है, दुर्लभ है,

रोशनी में, फुसफुसाते हवा में अस्तित्व में है।

एक अंतहीन तड़प, एक खामोश प्रार्थना—

मैं उसे अब भी चाहता हूँ, लेकिन आजाद नहीं हो सकता।



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