रात तो सोने वालों के लिए है|

 रात तो सोने वालों के लिए है,

जागने वालों के लिए रात भी बस एक काला दिन।


रात की चादर तले जब जग सो जाता,

सपनों में खोकर हर दर्द को भुलाता।

पर कुछ आँखें हैं जो नींद से दूर,

उन्हें हर रात सताता है एक अनकहा गुरूर।


जिनके दिलों में हलचल है, सवालों की भीड़,

रात की नीरवता में, वो छुपाए हैं पीर।

रात नहीं है उनके लिए सुकून का आलम,

उनके लिए अंधेरे में ही है छुपा हुआ ग़म।


चमकते तारे भी उन्हें राहत नहीं देते,

वो चाहें जितना भी, ख़ामोशी में खो नहीं पाते।

रात उनके लिए है एक न खत्म होने वाला सफर,

जहाँ अंधेरा ही अंधेरा है, बिना किसी भोर की खबर।


जिनके दिलों में ख्वाबों का बोझ भारी है,

हर रात उनके लिए जागते हुए गुजारी है।

वो रौशनी को तरसते हैं, पर मिलती नहीं राह,

हर रात उनके लिए एक लंबा काला दिन का गवाह।


दिन की चहल-पहल, सूरज की किरणें,

जागने वालों के लिए वो सब है अजनबी सी बातें।

रात की कालिमा में उनकी जंग चलती है,

अंधेरे में खोई हर उम्मीद की झलक मिलती है।


सन्नाटे में उनकी आवाजें गूंजती हैं,

दिल की बेचैनी में घड़ियाँ बस यूँ ही गुजरती हैं।

रात तो सोने वालों का संसार है सजीला,

जागने वालों के लिए ये बस काले दिन का सिलसिला।


रात का हर पहर उनके लिए एक इम्तिहान,

जहाँ सन्नाटा होता है, पर दिल का शोर महान।

चाहें तो बंद कर लें वो अपनी आँखें,

पर नींद को कहाँ मिले वो गुमनाम फाँकें।


जागते रहने वालों का नसीब है अजीब,

रात और दिन का फर्क, उनके लिए है एक सी रीत।

उनकी दुनिया में रात नहीं लाती है आराम,

वो बस गुजारते हैं उसे, जैसे बिता रहे हों दिन तमाम।


रात सोने वालों के लिए है एक तोहफा,

जागने वालों के लिए, एक अंतहीन ठहरा हुआ लम्हा।

इस काले दिन में भी वो ढूँढ़ते हैं रोशनी की झलक,

पर मिलता है बस अंधेरा, और एक अनजान कसक।


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