प्रकृति की फुसफुसाहट
सुनहरी घाटियों में जहाँ बिछी है रेत,
समय की बयार बहती मद्धम रेत।
पेड़ खड़े हैं शांति से, सिर उठाए,
उनकी छांव में दिल को सुकून आए।
नदियाँ बहतीं मधुर संगीत,
सुनने वालों को देती प्रीत।
पानी के संग, पत्थर सोए,
बूढ़े पर्वत के किस्से बोए।
रात में तारे करते बात,
दूर गगन में फैली सौगात।
सुनहरी चकाचौंध से रोशन राह,
अम्बर में छुपा अनंत का वाह।
फूल खिले फिर मुरझा जाए,
हर दिन जीवन का पाठ सिखाए।
हर पंखुरी में बसी है खूबसूरती,
क्षणभंगुरता में छुपी अमरता की मूर्ति।
सूरज उगेगा, चाँद ढलेगा,
हर सुबह जीवन का पाठ मिलेगा।
कभी बरसात, कभी खुला गगन,
इस चक्र में चलता जीवन।
जंगल कहता पत्तों की सरसराहट,
दिल ही समझे इसकी बात।
हर शाख में छुपा कोई किस्सा,
जीवन और मौत का मिलता हिस्सा।
बड़े हों या छोटे जानवर सब,
प्रकृति का हिस्सा हैं सब।
लोमड़ी, हिरण, चिड़िया उड़ती,
हमसे दूर, कहीं रहती।
पर्वत ऊँचे, स्थिर, महान,
धरती का अभिमान।
तूफान सहें, धूप भी झेलें,
अनंत काल तक, वे रहें।
समंदर की लहरें चूमे तट,
धरती के गालों पर नमक रख।
अनजाने गहरे, विशाल और अनंत,
उसकी गहराई में छुपा है शांत।
हवा जो बहती अदृश्य रूप,
एक रहस्यमयी, मूक स्वरूप।
घास में घुले, समुद्र हिलाए,
जीवन का स्पर्श संग लाए।
सुबह की ओस कली पे ठहरे,
रात की सौगात जग में बिखेरे।
जैसे मोती चमके धूप में,
स्वागत करते नई रूप में।
छुपी हुई वादियों में जंगली फूल,
रंग बिखेरें मूक अनकूल।
हर झोंके संग मुस्काए,
प्रकृति की कहानियाँ सुनाए।
सर्दी की बर्फ से हरी घास,
प्रकृति के दृश्य अनमोल पास।
घाटी से शिखर तक फैला जहाँ,
धरती का हर कोना पवित्र स्थान।
शाम का आकाश रंगों से भरा,
नीला, गुलाबी, नारंगी, और घुला।
दिन ढलते जब रात छा जाए,
शांति की बयार लहराए।
वर्षा जब गिरे, बिजली गरजे,
धरती में नया जीवन भर दे।
हर बूँद में नई उम्मीद समाए,
धरती की प्यास बुझाए।
ऋतुएं बदलें, समय के संग,
सर्दी, गर्मी, और पतझड़ संग।
हर ऋतु का अपना सुर,
वसंत से शरद तक का सफर।
तितलियाँ चुपचाप उड़े,
अपने रंगीन पंख फैलाए।
हर पंख में बदलाव की बात,
रंग-बिरंगी अजीब सौगात।
पतझड़ की पत्तियाँ लाल-पीली,
अलविदा कहतीं धरा की झीलें।
धीरे-धीरे गिरें जमीन पर,
संग अपनी जीवन की परिपूर्णता।
झील में जल शांति भरा,
आकाश को जैसे धरती पर ला।
शांति का दृश्य, निर्मल, साफ़,
जहाँ अम्बर और धरती का मेल साफ़।
मधुमक्खियाँ फूल से फूल पर जाएं,
तितलियों के संग गीत गाए।
छोटे पंखों में संगीत छुपाए,
मधुर मंथन में खो जाएं।
बेलें जो चढ़ें, जड़ें जो फैलें,
धरती के जीवन में सब कुछ मेल।
मिट्टी से लेकर ऊंचाई तक,
सूरज से मिलते, आकाश तक।
पुराने पत्थर, स्थिर और ज्ञानी,
सदियों के साक्षी, गहरे पानी।
हर दरार में कथा छुपी,
तूफानों से मिली उसकी जीत छिपी।
और रात में झींगुर गाएँ,
तारों के संग संगीत सुनाएं।
उनकी धुन तले, सितारों के पार,
एक मधुर आवाज़, कहीं से दूर।
प्रकृति का ज्ञान, दयालु और सत्य,
मन को देती शांत, सुखद व्याप्त।
उसकी गोद में, हमें जगह मिलती,
अनंत में बसी एक नाजुक रेखा।
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