मैं एक शादीशुदा औरत से प्रेम करता हूँ
मैं एक शादीशुदा औरत से प्रेम करता हूँ, गहराई से चुप,
एक राज़ है ये जो नींद में मुझे जगाए, धीरे से दबे कदम।
वो रौशनी में चलती है जहाँ मैं नहीं जा सकता,
किसी और से बंधी है वो, पर आज़ाद लगती हर रास्ता।
उसकी हँसी से भरे हैं वो कमरे जहाँ मेरी आवाज़ नहीं,
एक संगीत है जो गूंजता है, उसके नाम की नर्मी सी कहीं।
मैं दूर से बस देखता हूँ, एक छाया की तरह,
उस प्रेम का साक्षी, जो पराई आँखों से हो रहा।
उसके पास वो रिश्ते हैं जो प्रेम ने बुने,
एक ऐसा जीवन, जिसमें मेरी कोई कड़ी नहीं जुड़ी।
उसका हाथ किसी और का, उसका दिल किसी और का,
और मैं, बस एक पराया चेहरा, उसकी चाहत के पीछे खड़ा।
उसकी दुनिया सुनहरी धागों से बुनी हुई,
अधूरी कहानियाँ, मजबूत बाँहों में सजी हुई।
और मैं बस राह का मुसाफिर,
एक मौन दिल के साथ, एक अजनबी आह के साथ गुजरता।
मैं उससे प्रेम करता हूँ, हाँ, एक शांत दिल से,
दूर रहकर, अपनी छाया में निभाता हूँ अपना फर्ज।
ना कोई दावा, ना कोई वादा इस प्रेम का,
बस एक खामोश तड़प है, आसमान तले बसा।
वो उसका है, उसका, जिसे वो अपना कहे,
हर सुबह, हर रात, वो उसी की है।
और मैं बस वहीं खड़ा हूँ, जो मेरा हो नहीं सकता,
एक अनकहा प्रेम, एक खट्टी मीठी याद सा बसा।
मैं उससे प्रेम करता हूँ, पर ये एक खोया हुआ प्रेम है,
एक अग्नि जो बुझने नहीं दूँगा, चाहे कीमत कुछ भी हो।
एक ऐसा सपना जो साँस नहीं ले सकता,
फिर भी, ये प्रेम धीरे-धीरे गहरा होता है।
क्योंकि वो सूरज है, उजली और सुंदर,
और मैं रात का अंधेरा, जो उससे न डर।
मैं उससे प्रेम करता हूँ, सितारों की ताकत से,
एक दूर का प्रेम, जिसके निशान चुभे दिल पे।
तो यहाँ खड़ा हूँ मैं, एक अदृश्य मेहमान,
ऐसे भाव जो कभी नहीं कर सकते विरोध का एलान।
मैं उससे प्रेम करता हूँ, हाँ, और बस यही सब कुछ है—
एक ऐसा प्रेम जो खड़ा है, पर पुकार नहीं सकता।
Comments
Post a Comment