हलक़ी हलक़ी सर्दी आ गई है
हलक़ी हलक़ी सर्दी आ गई है...
हलक़ी हलक़ी सर्दी आ गई है,
हवा में ठंडक छा गई है।
धूप भी अब सिमटने लगी,
रात जल्दी दस्तक देने लगी।
आसमान में बादल घनेरा है,
हर तरफ़ धुंध का बसेरा है।
पत्तों पे ओस का नज़ारा है,
मौसम ने पहना कोहरा का सहारा है।
घर के अंदर चाय की तलब बढ़ी,
बाहर सन्नाटे ने जगह पकड़ी।
कमरे के कोने में किताबें सजीं,
लेकिन मन अब भी तन्हाई में अटका पड़ा।
तुम्हारी यादें हर कोने में गूंजती,
तेरे बिना ये शामें सूनी लगती।
हवा के झोंके जैसे तुमसे बात करते,
तुम्हारी खुशबू का अहसास लाते।
खिड़की से झांकता हूं मैं,
सन्नाटे में ढूंढता हूं तुम्हें।
तुम्हारी हंसी की वो गूंज कहां,
हर याद में तेरा नाम बसा।
रजाई में दुबक कर सोने का मन,
फिर भी तुम्हारी बाहों का है आलिंगन।
तुम्हारे बिना सर्दी अधूरी लगती,
तुम्हारे बिना रात भी ठंडी लगती।
किचन में चाय का चुल्हा जलता,
पर तुमसे बातों का जादू कहां मिलता?
खाली कप भी जैसे कहता है,
तेरे बिना हर घूंट फीका है।
लैंप की रोशनी में परछाई सी बनती,
तेरा अक्स हर कोने में बसती।
अकेलेपन का साया हरदम सताए,
दिल तुझे पास लाने को तरस जाए।
अंधेरा अब जल्दी छा जाता,
दिन का उजाला भी थम सा जाता।
पर तेरे साथ ये रातें भी छोटी होतीं,
तेरे संग हर पल खुशी से रोशन होती।
सर्दी का मौसम प्यार भरा है,
तेरे बिना ये अधूरा सा लगता है।
मेरे हर लम्हे में तेरा नाम बसा है,
मेरे हर ख्वाब में बस तू ही रचा है।
तो आओ, इस सर्दी को और खास बना दो,
तुम्हारी मौजूदगी से इसे गर्मी दे दो।
हलक़ी हलक़ी सर्दी आ गई है,
पर तेरे बिना हर मौसम अधूरा है।
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