मैं परीक्षा देने जाता हूं...

मैं परीक्षा देने जाता हूं

हर रविवार

या कोई भी दिन

अब परीक्षाएँ सिर्फ रविवार को नहीं होतीं


मैं कभी सफल नहीं होता

सफल होना चाहता भी नहीं शायद

मुझे तो बस सुबह उठना होता है 

जल्द से जल्द तैयार होना होता है

फ़िर समय पर सेंटर पहुँचना होता है

अच्छा लगता है

लड़ना और संघर्ष करना

और फिर हार जाना

मुझे लड़ना पसंद है


बड़े मंच की तलाश थी

अब भी तलाश जारी है

छोटे छोटे युद्ध लड़ता हूँ

हार जाता हूँ

फ़िर तैयार हो जाता हूँ

अगले परीक्षारूपी लड़ाई को लड़ने के लिए

शायद भूख है कोई

या भूखा रहना अच्छा लगता है


कभी लगता है

अकेलेपन को दूर करने जाता हूँ

वहां भीड़ होती है

मैं अपने पुराने दोस्तों को भी ढूंढता हूँ

मिल भी जाते हैं कई बार

अच्छा लगता है उन्हें देख कर

उनसे मिलकर

वो भी शायद जिंदगी से अब तक लड़ रहे हैं

और मैं भी


अब तो ज़्यादातार नये चेहरे रहते हैं

मेरे से उम्र में छोटे

लज्जा आती है

पर आदत से मजबूर हूँ

अच्छा लगता है परीक्षा हॉल में बैठना

रोक नहीं पाता हूँ खुद को

बार-बार वही कहानी दोहरा रहा हूँ

असफलता की... 

रूपेश रंजन

Comments