अजीब विडम्बना है...

अजीब विडम्बना है

जीतना चाहता था कि सब पास होंगे मेरे

सुना था सफल इंसान को सब पूछते हैं
पर ये क्या
सफल हुआ तो अकेला हो गया
आगे बढ़ गया
फिर सोचा कि इस से अच्छा था कि मैं हारा हुआ था
सब पास तो थे
भले पुछते नहीं थे
कुछ समझ ही नहीं आता
सब कुछ पाकर सब कुछ खो देना
या नहीं कुछ पाकर अपनों के बीच रहना
दर्द तब भी था
अब भी है
पहले अपनों के ताने दर्द देते थे
अब कोई ताने देने वाला नहीं है
ये दर्द है
कौन सा दर्द अच्छा है
कुछ कह नहीं सकता... 
रूपेश रंजन

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