मैं नहीं जानता....
मैं नहीं जानता,
मेरी आख़िरी कविता कौन सी होगी,
किस स्याही से लिखी जाएगी,
किस कागज़ पर सजी होगी।
शब्द बहेंगे या रुक जाएंगे,
धड़कनें ठहरेंगी या साथ निभाएंगी।
हर बार जब कलम उठाता हूँ,
जैसे अंतिम सवेरा लाता हूँ।
हर कविता में अपना दिल रखता हूँ,
हर पंक्ति में जीवन भरता हूँ।
कहीं कोई अधूरापन न रह जाए,
हर भावना से कविता महक जाए।
मैं सोचता हूँ,
अगर यह आख़िरी हो,
तो क्या ये मेरी पूरी बात कह पाएगी?
क्या ये मेरे स्वप्नों की झलक दिखाएगी?
हर कविता एक विदाई है शायद,
हर पंक्ति में अंत की छाया है।
इसलिए हर बार पूरी ताकत से,
शब्दों में अपना संसार रचता हूँ।
मैं नहीं जानता,
मेरी आख़िरी कविता कौन सी होगी।
इसलिए हर कविता को आख़िरी मानता हूँ,
और उसे अपना अमर गीत बनाता हूँ।
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