मेरी आख़िरी कविता ...
मैं नहीं जानता,
मेरी आख़िरी कविता कौन सी होगी।
कौन सा शब्द होगा वो आख़िरी,
जो मेरी कलम से निकलकर चुप हो जाएगा।
किस कागज़ पर वो साँसें थमेंगी,
कौन सी भावना उसमें बसेंगी।
किस लय में वो धड़कन रुकेगी,
कौन सी पीड़ा या ख़ुशी दिखेगी।
इस अनिश्चितता के अंधकार में,
मैं हर कविता को आख़िरी मानकर लिखता हूँ।
हर पंक्ति में जीने की ललक भरता हूँ,
हर शब्द में अपनी आत्मा रखता हूँ।
कहीं कोई अधूरापन न रह जाए,
कहीं कोई सपना अधूरा न सो जाए।
इसलिए हर बार जब कलम उठाता हूँ,
जैसे जीवन का अंतिम गीत गाता हूँ।
कविता मेरी आत्मा का आईना है,
हर लफ्ज़ में मेरा होना समाया है।
जो कहना है, अभी कह दूं,
जो जीना है, कविता में जी लूं।
कभी नहीं जानता कि कब शब्द चुप होंगे,
कब भावनाएँ मौन में घुल जाएंगी।
इसलिए हर कविता को अमरता देता हूँ,
हर लम्हे को सजीव बना देता हूँ।
मैं नहीं जानता,
मेरी आख़िरी कविता कौन सी होगी।
पर हर कविता को आख़िरी मानता हूँ,
ताकि वो अनंत तक साथ निभाए।
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