पागल है ये समाज...
लगता है सपना अधूरा ही रहेगा तुमसे मिलने का
वो कहते है
तुम मेरे दाह संस्कार में शामिल नहीं हो सकती
औरत कहां जाती है घाट पे
सोचा था आखिरी बार कहीं तुम पिघल जाओ
और मेरे मरने पे तो कम से कम मुझे देखने आ जाओ
पर लगता है ये समाज
मरने के बाद भी हमें तुम्हें मिलने नहीं देगा
उफ्फ ये समाज और इसके बेरहम कानून
जीने तो नहीं ही देते हैं
सुकून से मरने भी नहीं देते
मेरा सुकून तो तुम हो
और ये नदी किनारे मेरा सुकून ढूंढते हैं
पागल है ये समाज...
रूपेश रंजन
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