मुझसे मिलोगी तो शायद पहचान न पाओ..
मुझसे मिलोगी तो शायद पहचान न पाओ,
मैं वो अब नहीं, जो कभी था, वो कहां से लाऊं।
वक्त की आग में जलकर बदल गया हूं,
जो था कभी अपना, अब अजनबी सा हुआ हूं।
जो मुस्कान कभी तुम्हें खुश कर देती थी,
अब वो चेहरे से जैसे गुम हो गई है।
दिल का वो शोर, अब सन्नाटा बन गया,
जो मैं था पहले, वो कहीं खो गया।
आंखों में अब वो चमक नहीं रही,
जिंदगी की धूप ने हर छांव छीन ली।
जो सपने हमने साथ देखे थे कभी,
वो अब राख बनकर हवाओं में बिखर गए सभी।
तुम्हारी यादें अब भी मेरे साथ चलती हैं,
पर मैं वो नहीं, जो तुम्हें खुशी दे सकूं।
जो जिया करता था तुम्हारे ख्यालों में,
अब बस एक साया बनकर रह गया हूं।
मुझसे मिलोगी तो सवाल करोगी शायद,
"कहां गया वो इंसान जो मुझे जानता था?"
पर जवाब मेरे पास भी नहीं होगा,
क्योंकि मैं भी अब खुद को नहीं पहचानता।
वक्त ने मेरे हर हिस्से को बदल दिया,
जैसे नदी का पानी हर दिन नया हो।
अब जो हूं, वो तुम्हें भा सके या नहीं,
इसका वादा मैं खुद से भी नहीं कर सकता।
मैं मर चुका हूं, पर सांसें चल रही हैं,
हर धड़कन जैसे कोई बोझ सह रही है।
तुम्हारे सवालों का जवाब बन पाऊं या नहीं,
इसकी उम्मीद भी अब मैं रख नहीं सकता।
तो अगर कभी मिलो, तो मुझसे उम्मीद न करना,
जो मैं था, वो अब लौटकर नहीं आएगा।
मैं जो हूं, उसे समझ पाओ तो अच्छा,
वरना ये मुलाकात भी बस धुंध बनकर छाएगा।
मुझसे मिलोगी तो शायद पहचान न पाओ,
मैं वो अब नहीं, जो कभी था, वो कहां से लाऊं।
तुम्हें पसंद आऊं या तुम्हारी नजरों में गिर जाऊं,
ये फैसला अब तुम्हारे दिल पर ही छोड़ जाऊं।
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