दर्द ही दर्द था...

दर्द ही दर्द था,

जब से ज़िंदगी को समझा।

इतना दर्द था,

कि दर्द की आदत हो गई।


अब ख़ुशी भी दर्द में छिपी है,

जैसे बहारों में धुंध बसी है।

दिल को सुकून मिले कैसे,

जब हर ख़ुशी भी ग़म की क़सम खा बैठी है।


साँसें चलती हैं, मगर बोझ लिए,

ख्वाब टूटे, आँखों में सोए।

इस दर्द को अब क्या नाम दूँ,

ये तो मेरा साथी बन गया है हर रोज़।




“दर्द ही दर्द था

जब से जिंदगी को समझा 

इतना दर्द था कि दर्द की आदत हो गई

दर्द की ही चाहत हो गई

अब ख़ुशी भी दर्द में है

इतना की दर्द ही ख़ुशी बन गई..."




“वो बीत गए

अब याद नहीं

कुछ और मीले

अब वो भी याद नहीं

कुछ और मिलेंगे

उनको भी भूल जाऊंगा मैं

फिर मैं रुख़सत हो जाऊंगा

सब कुछ भूल के"


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