मैं अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता...
मैं अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता,
मेरा स्वभाव ही है प्रेम करना।
वो प्रेम जो मुक्त हो हर बंधन से,
जिसमें ना हो कोई सीमा, ना बंधन।
मुझे कैद में जीना नहीं आता,
मुझे बंधन पसंद नहीं है।
मैं चाहता हूँ प्रेम को खुलकर जीना,
हर हृदय में अपनेपन को सींचना।
जैसे फूल अपनी खुशबू नहीं बदलते,
जैसे नदी अपनी धारा नहीं मोड़ती।
वैसे ही मेरा स्वभाव है प्रेम करना,
बिना किसी शर्त, बिना किसी बंधन।
जो प्रेम बाँध दे, वो प्रेम नहीं,
वो तो व्यापार बन जाता है।
मैं चाहूँ उस प्रेम का अनुभव,
जो केवल देना जानता है।
मेरा प्रेम हो बादल सा,
जो बरसे बिना रोक-टोक के।
मेरा प्रेम हो सूरज सा,
जो चमके हर अंधेरे में।
मैं चाहूँ हर जीवन में खुशी भरना,
हर आँख से आँसू पोंछना।
मैं चाहूँ हर हृदय में आस जगाना,
हर आत्मा में प्रकाश लाना।
मुझे बंधनों में जकड़कर जीना नहीं आता,
मुझे स्वछंद प्रेम करना आता है।
प्रेम जो मुक्त हो, स्वतंत्र हो,
जो किसी सीमा में सिमटा न हो।
प्रेम मेरा धर्म है, मेरा कर्म है,
मैं प्रेम के बिना अधूरा हूँ।
प्रेम से ही मेरी पहचान है,
प्रेम से ही मेरा संसार है।
मेरा प्रेम हो पवन सा,
जो हर कोने में पहुँच सके।
मेरा प्रेम हो आकाश सा,
जो सबको गले लगा सके।
जो मुझसे कहें प्रेम में बंध जाओ,
मैं उनसे कहूँ, प्रेम तो स्वतंत्र है।
बंधन में प्रेम घुटने लगता है,
और मैं प्रेम का सम्मान करता हूँ।
मुझे जल की तरह बहना आता है,
जो जहाँ जाए, वहीं समा जाए।
मुझे रोशनी की तरह चमकना आता है,
जो हर अंधकार को मिटा जाए।
मैं चाहूँ प्रेम को निराकार करना,
हर दिल में उसे आकार देना।
मैं चाहूँ प्रेम को अमर बनाना,
हर आत्मा में उसे जिंदा रखना।
प्रेम को कोई दीवार नहीं रोक सकती,
प्रेम को कोई सीमा नहीं बाँध सकती।
प्रेम वो एहसास है जो बहता रहता है,
और हर मन को छूता रहता है।
मुझे बंधन में बंधकर प्रेम करना नहीं आता,
मैं अपने पंखों को रोक नहीं सकता।
मैं अपनी प्रकृति को बदल नहीं सकता,
क्योंकि मेरी प्रकृति है प्रेम करना।
खुला प्रेम, पवित्र प्रेम,
जो किसी को कष्ट न पहुँचाए।
स्वतंत्र प्रेम, निस्वार्थ प्रेम,
जो हर दिल को अपनाए।
मैं हूँ वही, जो प्रेम में जीता है,
जो प्रेम में हर पल बिताता है।
मैं बदल नहीं सकता अपनी पहचान,
क्योंकि प्रेम ही मेरा सच्चा प्रमाण।
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