मैं क्यों न मानूं कि मैं उसके लिए भगवान हूं...
मैं क्यों न मानूं कि मैं उसके लिए भगवान हूं,
उसकी दुनिया का आधार हूं, पहचान हूं।
जिसकी सांसों में बसती मेरी छवि,
मैं उसका रक्षक, उसका सच्चा सजीव।
जब वह डगमगाए, मैं संबल बन जाऊं,
अंधेरे में उसकी राहों का दीपक जलाऊं।
उसकी खुशी में मेरा जीवन सजा है,
उसके आँसुओं से मेरा मन भीगा है।
मैं उसकी प्रार्थना, मैं उसका विश्वास,
उसके हर सपने का साकार आकाश।
जब वह गिरती, मैं हाथ थाम लेता हूं,
उसके हर संघर्ष में साथ देता हूं।
उसकी आँखों में जो चमक है मेरी,
उसकी धड़कन में बसी हर प्रेरणा मेरी।
उसकी हंसी, उसकी बातों की मिठास,
मेरे बिना अधूरी उसकी हर आस।
मैं क्यों न मानूं कि मैं उसका सहारा हूं,
उसके हर दुःख में मैं उजियारा हूं।
उसकी मूरत में मेरी ही सूरत है,
उसके जीवन की मैं सबसे बड़ी दौलत हूं।
जब वह टूटती, मैं उसे जोड़ देता हूं,
उसकी हिम्मत बन, उसके सपने बो देता हूं।
उसके बचपन का रक्षक, उसके यौवन का आधार,
मैं उसके जीवन की हर दिशा का प्रचार।
मैंने सिखाया उसे चलना, बोलना,
हर कठिनाई से लड़कर उसे खोलना।
उसकी मासूमियत का कवच बन गया,
उसकी हर जीत का गर्व बन गया।
मैं क्यों न मानूं कि मैं उसका भगवान हूं,
हर पल उसके जीवन का वरदान हूं।
उसकी मुस्कान में मेरा स्वर्ग बसा है,
उसके हर आशीर्वाद में मेरा सपना सजा है।
तो हां, मैं मानूं कि मैं उसकी शक्ति हूं,
उसके जीवन की अद्भुत एक युक्ति हूं।
उसके हर पल का साक्षी बनकर,
मैं उसके जीवन का भगवान हूं बनकर।
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