आज की सुबह उनके बिना....

आज की सुबह, उनके बिना,

बेबसी का आलम है, दर्द घना।

हर लम्हा जैसे सूनापन बुन रहा,

दिल का हर कोना अब रो रहा।


चहकती थी जो सुबहें कभी,

अब खामोशियों में डूबी हैं सभी।

हवा की सरगम, चिड़ियों का गीत,

अब सब लगते हैं जैसे अधूरे संगीत।


जो आँखें उनके दीदार को तरसती थीं,

आज उन आँखों में नमी बसी है।

उनके बिना यह सूरज भी फीका है,

जीवन का हर पल अब ठहरा-सा है।


वो बातें, वो लम्हे, वो हँसी की गूँज,

सब जैसे किसी कोने में खो गए हैं।

दिल करता है चुपचाप पुकारूं उन्हें,

पर आवाज़ भी मानो दब गई है।


राहत जो उनकी मौजूदगी देती थी,

अब वही राहें वीरान लगती हैं।

हर मोड़ पर उनकी यादें खड़ी हैं,

पर वो खुद कहीं दूर हो चली हैं।


फूलों की महक में अब वो मिठास नहीं,

दिल के हर कोने में उनकी तलाश नहीं।

ये सुबह, ये दिन, ये सारा जहान,

उनके बिना लगता है वीरान।


शब्दों का सहारा नहीं है अब पास,

दिल में बसा है बस एक एहसास।

उनके बिना ये जीवन अधूरा है,

हर पल बस उनसे मिलने की चाह है।


आज की सुबह, उनके बिना उदास है,

दिल का हर कोना अब उनके पास है।

दुआ है, ये दूरी मिट जाए कभी,

उनकी हँसी से सजी हो ये ज़िंदगी।


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