"मैं वही हूँ उसी शहर में"...

 

"मैं वही हूँ उसी शहर में"

मैं वही हूँ उसी शहर में,
जहाँ यादों की बस्ती बसती है,
जहाँ हर गली में तेरे कदमों के निशां,
अब भी मेरी आँखों में धूल सी जमती है।

मेरी क्या ही गलती है,
जो वक़्त को रोक नहीं पाया,
तुम्हें जाते देखा था उस मोड़ से,
पर लौटकर देखना कभी क्यों नहीं आया।

साँझ की हर लाली में,
तेरा नाम अब भी चमकता है,
हर सुबह सूरज की किरण,
तेरे वादों सा फिसलता है।

शहर वही है, रास्ते वही,
पर तेरा इंतजार नया सा है,
हर एक मोड़ पर पलकें उठती हैं,
कहीं तू होगी, ये भरम रहा सा है।

फूलों में अब भी वही खुशबू,
जिसे कभी तुमने संजोया था,
बरसात की पहली बूंद में,
वही एहसास, जो कभी खोया था।

मेरी क्या गलती है,
जो दिल को तसल्ली देना नहीं आया,
तुम चले गए छोड़कर,
पर यादों का कोई हिसाब नहीं चुकाया।

हर दिन एक आईना है,
जिसमें तेरा अक्स दिखता है,
शहर की भीड़ में अकेला मैं,
बस तेरे नाम पर रुकता है।

मैं वहीं हूँ, जहाँ वादे किए थे,
जहाँ हंसी की गूंज गुम गई,
तुम चले गए ऐसे, कि फिर कभी,
इस शहर में कदम भी नहीं आए।

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