"वो मोड़, वो यादें"...
"वो मोड़, वो यादें"
मैं वही हूँ उसी मोड़ पर खड़ा,
जहाँ तुमने छोड़ा था हाथ मेरा।
न गलती मेरी, न सज़ा तुम्हारी,
बस मोहब्बत का ये फासला बना रहा।
तुम चले गए ऐसे, कि लौटकर देखा भी नहीं,
दिल तोड़ दिया, पर आवाज़ दिया भी नहीं।
अब हर गली में तेरे कदमों की आहट ढूंढता हूँ,
पर वो रास्ता कभी दोबारा सजा भी नहीं।.....
"मैं वही हूँ उसी शहर में"
मैं वही हूँ उसी शहर में,
जहाँ हर गली तेरी याद दिलाती है,
मेरी क्या ही गलती थी,
जो मोहब्बत मेरी सच्ची कहलाती है।
तुम चले गए छोड़ के ऐसे,
कि पीछे मुड़कर कभी देखा नहीं,
दिल टूटा तो आवाज़ दबा ली,
पर तन्हाई ने कभी ये सहा नहीं।
अब हर मोड़ पर तेरी तलाश है,
हर चेहरे में तेरा ही अक्स है,
पर तुम हो कि कहीं नहीं दिखते,
जैसे ये शहर भी अब बेबस है।....
"वही शहर, वही मैं"
मैं वही हूँ उसी शहर में,
जहाँ हर मोड़ पर तेरा नाम लिखा है,
मेरी क्या गलती थी,
जो तेरे प्यार में दिल हार बैठा है।
तुम चले गए छोड़ के यूँ,
जैसे कोई सपना अधूरा रह जाए,
पर दर्द ये ऐसा है कि,
सांसें चलती हैं, पर जिंदगी ठहर जाए।
तुम्हारी यादों की धुंध में,
हर शाम धुआं-धुआं हो जाती है,
आँखों में बस एक दर्द बचता है,
जो आँसुओं से कभी बह नहीं पाती है।
शहर तो वही है, पर रंग नहीं,
महफिलें हैं, पर सुकून नहीं,
तुम लौटकर कभी देखे भी नहीं,
और मैं अब भी वहीं हूँ, जहाँ तुम नहीं।
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