"वही शहर, वही मैं"...

 "वही शहर, वही मैं"


मैं तो वही हूँ उसी शहर में,

मेरी क्या ही गलती है,

तुम चले गए छोड़ के,

और ऐसे चले गए कि,

फिर देखने ही नहीं आए।


हर गली में तेरी खुशबू है,

हर मोड़ पर तेरा नाम,

मैं कदम-कदम पर रुकता हूँ,

पर तेरा कहीं नहीं अता-पता।


चाँदनी अब भी वही है,

तारे भी गिनती करते हैं,

पर मेरे साथ अब कोई नहीं,

जो रातों को कहानी कहता है।


तुम्हारी हँसी की सरगम में,

अब खामोशी का संगीत है,

शहर तो वही है, लोग भी वही,

पर एक अधूरी सी प्रीत है।


मैं चल रहा हूँ, जी रहा हूँ,

बस एक नाम दिल में लिए,

मेरी क्या ही गलती है,

जो तुमको भूल नहीं पाया हूँ।


तुम चले गए छोड़ के,

पर दिल कभी खाली नहीं हुआ,

मैं तो वही हूँ उसी शहर में,

बस एक दर्द है, जो कभी थमा नहीं।



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