मैं सही ही करूँगा...

 

मैं सही ही करूँगा

मैं सही ही करूँगा, रिश्तों से परे,
नर्म धरा पर चलूँ, धर्म अनुकूल तेरे  ।
सच के संग चलना, यही धर्म कहे,
झूठ के घेरे में न फँसे कभी कदम मेरे।

रिश्तों की दीवारें कभी रोक न सकें,
जो सही हो वही, हर हाल में मैं कर सकूं।
धर्म का उजाला मेरे पथ को दिखाए,
अंधेरों में भी सत्य का दीप जलाए।

बांधने की कोशिश करें भावनाओं के बंधन,
पर सत्य से बड़ा न कोई यहाँ कारण।
लहू के रिश्ते हो या अपनत्व का बंध,
धर्म और सत्य के संग रहना मेरा प्रण।

हर दिल की पुकार मैं सुनूँ ध्यान से,
पर न्याय का तराजू झुके न भावनाओं से।
चाहे कोई नाराज हो, कोई पीछे छूटे,
मैं धर्म की राह पर खुद को सच्चा पाऊं।

झूठ के दरिया में नहीं बहूंगा मैं,
सत्य के पर्वत पर ही चढ़ूंगा मैं।
रिश्तों से बड़ा है धर्म का सम्मान,
सही राह चुनने में है जीवन का ज्ञान।

तो चलूँगा सच्चाई के इस सफर पर,
हर कठिनाई को पार करूँ धर्म के असर पर।
मैं सही ही करूँगा, रिश्तों से परे,
धर्म का दीप जलाए मेरी राहों में।

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