स्पर्श था वो जैसे हल्की हवा...

 



स्पर्श था वो जैसे हल्की हवा,

सिहरन भरी मधुरिमा की छुवा।

तुम्हारी हथेली का वह पहला अहसास,

धड़कनों में जैसे बह गया मधुमास।


कांपते हाथों से जो छुआ था तुम्हें,

सपनों का आकाश मिल गया हमें।

वो घबराहट, वो लज्जा का पल,

बन गया मन में चिरंजीव पल।


और जब अधरों से अधर छुए थे,

भावनाओं के दरिया लहराए थे।

वो पहला चुम्बन — एक नयापन,

प्यार का, विश्वास का प्यारा बंधन।


सांसों में घुली थी ख़ुशबू महकी,

सजी थी वो घड़ी, जैसे कविता लेखी।

तुम्हारे संग उस लम्हे का एहसास,

हर पल, हर धड़कन में होता निवास।


हमारा तुम्हारा वो पहला मिलन,

हृदय की किताब का पहला सुमन।

यादों के उपवन में वह खिला,

जैसे चांदनी रात का पहला किला।


आज भी उस स्पर्श की गूंज है यहाँ,

वो पहला चुम्बन है प्रेम का बयाँ।

वो स्पर्श, वो चुम्बन कभी भूला नहीं,

दिल की धड़कनों से वो छूटा नहीं।


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