कैसे भूलूँ वो तुम्हारा पहला स्पर्श...
कैसे भूलूँ वो तुम्हारा पहला स्पर्श,
हर सांस में बसी वो कोमल पिघलती दस्तक,
दिल की धड़कन ने लिया था नाम तेरा,
हर धड़क में थी बसी तेरी महक।
कैसे भूलूँ वो पहली छुअन की बात,
जैसे चाँदनी ने छुआ हो कोई रात,
तेरे हाथों की नरमी ने जो रूह जगाई,
वो यादें अब भी खामोशियों में लहराई।
तुम्हारी महक ने जो जादू किया,
हर फूल ने खुशबू में तेरा नाम लिया,
हवाएँ जब भी गुज़रती हैं पास से,
तेरी ख़ुशबू का सफ़र अब भी थमा नहीं।
वो लम्हा जब उंगलियाँ मिली थीं,
सपनों के दरवाज़े खुल गए थे,
तेरी छुअन की हर सरगोशी में,
मेरा दिल इश्क़ में डूब गया था।
कैसे भूलूँ वो पहली मुलाकात का रंग,
तेरी महक से भर गया था हर अंग,
वो गुलाब की पंखुड़ी-सा एहसास,
अब भी दिल की दीवारों पर लिखता तेरी बात।
तेरे नाम की सरगम हर सांस में बसी है,
तेरे छूने की मिठास अब भी दिल की तहरीर है,
तुम्हारे बिना भी, हर लम्हा है तेरे साथ,
महक और स्पर्श की वो पहली मुलाकात।
कैसे भूलूँ वो नर्म लम्हों की धुन,
जो तेरे साथ बहा था मेरा हर जूनून,
वो पहला स्पर्श, वो पहली महक,
अब भी मेरे दिल की धड़कन है अनदेखा नक़्श।
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