कितना समझते हैं स्त्री को पुरुष, उनके देह के परे...

 

कितना समझते हैं स्त्री को पुरुष,
उनके देह के परे

  1. हुस्न का हर चेहरा पढ़ लिया, पर मन की किताब अधूरी रही,
    शब्दों में छिपी उसकी खामोशी, कब किसी ने पूरी सही।

  2. आँखों में सपने, दिल में आकाश लिए चलती है,
    त्याग की हर कथा, चुपचाप लहू से लिखती है।

  3. देह को पूजा, पर आत्मा का न कोई दीप जलाया,
    उसके जज़्बातों को रेत की तरह हाथों से गिराया।

  4. वह प्रेम है, वह समर्पण है, पर यह जानोगे कब?
    देह से परे उसकी शीतल छाँव को पहचानोगे कब?

  5. हर दर्द की दीवार में वह नींव की ईंट होती है,
    सपनों के शहर में वह अपनी परछाई बोती है।

  6. पर पुरुष ने देखा सिर्फ चेहरा, और बात वहीं पर छोड़ दी,
    मन की गहराई में डूबने की, न कभी किसी ने होड़ की।

  7. वह धरा-सी सहनशील है, वह नदी-सी बहती जाती है,
    पर इस यात्रा की थकान को कौन देख पाता है?

  8. कभी त्याग की अग्नि, कभी ममता का स्पर्श है,
    पर देह के परे उसका जीवन ही संघर्ष है।

  9. आँखों की नमी में हर सपना छिपा लेती है,
    फिर भी खुद को हर बार एक उम्मीद दे देती है।

  10. जो समझ सके उसके मन को, वही प्रेम का ज्ञानी होगा,
    देह के पार उसका संसार, तभी तुम्हारा अपना होगा।

  11. शब्दों से नहीं, एहसासों से उसे पाना होगा,
    देह की सीमा से बाहर, आत्मा का रिश्ता निभाना होगा।

  12. तब पूछना ख़ुद से, कितनी समझ आई उसकी परिभाषा,
    क्या सिर्फ़ देह तक सीमित रही, या पाई उसकी गहराई की भाषा।

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