वक़्त के परिंदे हैं हम...
वक़्त के परिंदे हैं हम
हमारा कोई ठिकाना नहीं होता,
वक़्त के संग बहते रहते हैं,
हमें मंज़िल कहाँ पता होता।
दिशाओं का मोह नहीं करते,
आसमानों में उड़ान भरते,
चले जहाँ हवाएँ ले जाएं,
बस उसी ओर चलते रहते।
राहों की फिक्र कहाँ होती है,
हर मोड़ एक नया किस्सा है,
हम तो बस कागज़ की कश्ती,
जो बहाव में ढल जाता है।
कभी सुख की छाँव मिलती है,
कभी दुख का अंधेरा होता है,
वक़्त की हर चाल अनजानी,
हर लम्हा एक सवेरा होता है।
गिरते, संभलते, उड़ते रहते,
पंखों में हौसला भरा होता है,
ख्वाबों को टूटने नहीं देते,
आँखों में सपना बसा होता है।
जुस्तजू सिर्फ़ सफर की रहती,
मंज़िल की चिंता नहीं होती,
हम वक़्त के अनजाने राही,
हर राह अपनी कहानी होती।
जो थम गया वो परिंदा नहीं,
जो बंध गया वो आसमां नहीं,
हम वक़्त के संग बहते दरिया,
रुक जाएं तो दरिया कहाँ?
कोई बंधन हमें रोक नहीं सकता,
कोई दीवार हमें थाम नहीं सकती,
हम तो हवा के झोंके हैं,
जो हर पल नई राह चुनती।
हम वक़्त के परिंदे हैं,
ना किसी ठिकाने का बंधन है,
बस उड़ना और उड़ते रहना,
यही हमारी पहचान है।
तो चलो बहें उस दिशा में,
जहाँ मंज़िल की खुशबू आए,
हर पल को जी लें पूरी तरह,
क्योंकि लौटकर वक़्त न आए।
हर कदम पर नई कहानी होगी,
हर उड़ान में नई रवानी होगी,
हम वक़्त के परिंदे हैं,
और यह दुनिया हमारी निशानी होगी।
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