प्रेम का स्वाभाविक स्वरूप...
प्रेम का स्वाभाविक स्वरूप
प्रेम करना कितना स्वाभाविक है,
जैसे धरती पर बारिश का आना।
जैसे सूरज का हर सुबह उगना,
जैसे चाँद का रात में जगमगाना।
कितना सरल है प्रेम में होना,
जैसे हवा का चुपचाप बह जाना।
जैसे पंछियों का गुनगुनाना,
जैसे फूलों का महकते जाना।
प्रेम में जो सुकून मिलता है,
वो कहीं और कहाँ मिलता है।
मन के सारे भार को हल्का करता,
हर दर्द को पल भर में हरता है।
किसी को प्रेम करना कितना अच्छा लगता है,
जैसे कोई अपना पास आ बैठा हो।
जैसे अधूरी ख्वाहिशें पूरी हो गई हों,
जैसे सूखे खेतों में हरियाली फैली हो।
प्रेम का हर पल खास बन जाता है,
हर दिन त्योहार सा लगने लगता है।
मन में उमंग और उत्साह भर जाता है,
हर जीवन का सपना सजने लगता है।
प्रेम में मन तनावमुक्त हो जाता है,
जैसे नदी का शांत बहाव हो।
जैसे जीवन की उलझनों का हल हो,
जैसे अनमोल कोई पल हो।
प्रेम सिखाता है सरलता को अपनाना,
छोटे-छोटे पलों में खुशी को पाना।
मन के द्वार खोलकर अपनापन देना,
हर किसी को अपने जैसा समझ लेना।
प्रेम से जीवन का अर्थ समझ आता है,
इससे ही तो जीवन का सार बनता है।
जहाँ प्रेम है, वहाँ ही तो ईश्वर है,
वहीं हर दिल का असली घर है।
तो चलो, प्रेम के रंग में रंग जाएं,
स्वाभाविकता और सरलता को अपनाएं।
प्रेम से जीवन को सुंदर बनाएं,
हर पल प्रेम की महिमा गाएं।
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