दे दो वह महक जिसके सहारे जी लूं ये जिंदगी..
दे दो वह महक जिसके सहारे जी लूं ये जिंदगी
तारों से भी दूर कहीं,
ख्वाबों की इक डोर बंधी।
मन की गहराइयों में बसी,
दे दो वह महक, जिससे सांसें महक उठें।
पथरीले राहों का दर्द सहूं,
हर घाव को हंसते-हंसते गहूं।
पर दिल के आंगन में सजी,
वो खुशबू दो, जिससे हर दर्द छिप जाए।
फूलों का संग हो, या कांटों का बिस्तर,
मन को सुकून दे, कोई प्यार का मंजर।
शब्द नहीं, स्पर्श नहीं,
बस वह एहसास दो, जिससे हर क्षण जी लूं।
दुनिया की भीड़ में खोया हूं कहीं,
अपने साये तक से दूर हूं यहीं।
दे दो वह महक, जिसमें खुद को पाऊं,
और हर सुबह को एक नई रोशनी से सजाऊं।
बस इतनी सी है चाह मेरी,
कोई सच्ची मुस्कान हो घड़ी घड़ी।
दे दो वह महक,
जिसके सहारे जी लूं ये जिंदगी।
शायरी...
दे दो वो महक, जिसके सहारे जी लूं ये ज़िंदगी,
सपनों में रंग भरूं, या दर्द में भी खुशी मिल जाए कहीं।
हर सांस में हो एहसास तेरे प्यार का,
दिल की धड़कन भी फिर साज़-ए-मोहब्बत गुनगुनाए यहीं।
तेरी यादों की चाशनी से महके हर लम्हा मेरा,
खुशबू बने तू, और तन्हाइयों में उजाला हो तेरा।
बस एक चाहत है, तेरे नाम से महक उठे मेरा वजूद,
दे दो वो महक, जिसके सहारे जी लूं ये ज़िंदगी।
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