"बिना तुम्हें छुए ही तुम्हारा स्पर्श कर लेता हूँ, इसलिए तो तुम्हारे लिए लिखता हूँ..."

 

"बिना तुम्हें छुए ही तुम्हारा स्पर्श कर लेता हूँ,
इसलिए तो तुम्हारे लिए लिखता हूँ..."

स्याही की बूँदों में घुली हैं बातें तुम्हारी,
कागज़ की सिलवटों में हैं यादें हमारी।
हवा की लहरों में बहती है खुशबू तुम्हारी,
अल्फ़ाज़ में बसती है तस्वीर तुम्हारी।

जब शब्दों से तुम्हारी आँखों को सहलाता हूँ,
बिना छुए भी तुम्हारा अहसास पाता हूँ।
सुनता हूँ तुम्हारी हँसी को चुपचाप,
हर हरफ़ में बुनता हूँ मीठे ख़्वाब।

रात की तन्हाई में चाँदनी बनती हो,
मेरी कविताओं की हर पंक्ति में सजती हो।
साँसों के धागों से बुनता हूँ रिश्तों को,
स्याही से छूता हूँ तुम्हारी उँगलियों को।

बिना छुए भी तुम्हें महसूस करता हूँ,
हर लफ्ज़ में तुम्हें जीता और मरता हूँ।
इसीलिए तो हर रोज़ लिखता हूँ,
बिना तुम्हें छुए ही तुम्हारा स्पर्श कर लेता हूँ।

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