राख से फिर जन्म लूंगा...
राख से फिर जन्म लूंगा
कितनी बार बर्बाद हुआ,
कितनी बार बिखर गया,
फिर खुद को समेटा, और खड़ा हुआ।
जलाया है खुद को बार-बार,
फिर उसी राख से खुद को बनाया है।
पर ये हमेशा नहीं होगा,
एक दिन सब रुक जाएगा।
वो लपटें जो मुझमें जलती थीं,
एक दिन ठंडी हो जाएंगी।
वो राख जो हर बार जीवन देती थी,
अब बस ख़ामोशी बन जाएगी।
पर जब तक सांसें बाकी हैं,
जब तक धड़कन चलती है,
मैं जलूंगा, उठूंगा, बनूंगा,
हर बार नए रूप में खिलूंगा।
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