कल शाम मैंने उसे देखा था...
"कल शाम मैंने उसे देखा था
फिर नहीं देखा।
ऐसा नहीं है कि उसे देखना नहीं चाहता था,
पर देखा नहीं,
क्योंकि वो नहीं चाहती है कि मैं उसे देखूं।
मैं देख सकता हूँ उसे,
उसकी मर्जी के खिलाफ भी,
पर मैं ऐसा नहीं करूँगा।
ऐसा नहीं है कि ये मेरी हार है,
ये सच है,
जो मुझे स्वीकार करना ही होगा,
नहीं तो और नुकसान हो जाएगा।
पहले ही बहुत नुकसान कर चुका हूँ मैं अपना,
आगे बढ़ना ही समझदारी है।
हम बहुत कुछ चाहते हैं,
चाहना अलग बात है
और पाना अलग बात।
पाना हमेशा जरूरी नहीं होता,
कभी-कभी छोड़ना ही सही होता है।"
– रुपेश रंजन
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