जीवन ज़रूरी है मुक्ति के लिए या जीवन ज़रूरी है?...

जीवन ज़रूरी है मुक्ति के लिए या जीवन ज़रूरी है?


जीवन का अर्थ क्या केवल बंधन,

या मुक्ति का यह पहला चरण?

काया का बंधन, मन का बंधन,

या फिर स्वच्छंद उड़ान का दर्शन?


सांसें चलें तो जीवन कहाएँ,

पर मन की जड़ता कब मिट पाए?

क्या जीना मात्र धड़कन भर है,

या आत्मा की कोई पुकार गहर है?


मुक्ति यदि अंतिम सत्य है जग में,

तो फिर यह जीवन क्यों इस रग में?

क्या यह बस पीड़ा की झंकार,

या अनुभवों की मीठी फुहार?


कर्मों का चक्र, पुनर्जन्म की रेखा,

या स्वच्छंद चेतना की कोई अभिव्याख्या?

यदि जीवन सिर्फ मुक्ति की राह,

तो हर अनुभूति क्यों दे रही चाह?


दर्द में भी कुछ अर्थ समाहित,

सुख-दुःख की लहरें अनुग्रह-वाहित।

जीवन बिना मुक्ति अधूरा ही सही,

पर क्या मुक्ति का पथ भी जीवन बिना सही?


यदि मुक्ति ही मंज़िल अंतिम मानी,

तो क्यों हंसते, क्यों बहाते पानी?

क्यों प्रेम के रंगों में रंगते,

क्यों स्वप्नों में सत्य को खोजते?


शायद जीवन ही परम सत्य है,

हर क्षण में छिपा नव-अर्थ है।

मुक्ति अगर जीवन का अंत है,

तो जीवन ही उसका प्रारंभ है।


मुक्ति के लिए जीवन अनिवार्य नहीं,

जीवन ही एक अनमोल सार्थक गान सही।

हर स्पंदन में छिपा है संगीत,

हर क्षण में एक मुक्ति की प्रीत।


तो जीना सीख, मुक्त हुआ जाता,

हर क्षण में सत्य स्वयं आ जाता।

मुक्ति न कहीं दूर गगन में,

वह तो बस छिपी है मन में।


रूपेश रंजन...

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